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पोयूषयपिणी टीका स् ५३ भगवदर्शनार्थ कूणिकस्य गमनम् દર जय जय णंदा । जय जय भद्दा ! भई ते, अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि, जियमझे वसाहि । इदो इव देवाणं, चमो डव असुराणं, धरणो डर नागाणं, चंदो इव ताराणं, भरहो इव जनान-दति नन्द , तमन्बोपन ह नन्द जय जय विजयगान भन । 'जय जय भहा' जय जय भद्र । हे भद्र कल्याणम्वरूप ' विजयम्य । 'भद्द ते' भद्र तुभ्यमस्तु । 'अजिय जिणाहि' अजित जय-अजित देगादिक जय, 'जिय च पालेहि जित च पालय, 'जियमझे वसाहि' जितमध्ये वम । तथा त्वम् ‘इदो इव देवाण' इन्द्र दव देवानाम्, 'चमरो र अमुराण' चमर इव-एतन्नामक इन्द्र दव असुराणाम् सुरविरोपिनाम्, 'यरणो इव नागाण' धरणेन्द्र इव नागानाम्, 'चंदो दव ताराण' चन्द्र दव तारागाम्, 'भरहो इव मणुयाण' मरत टव मनुजानाम्, 'वहद वासाट' बहूनि वपागि, 'वह वाससयाइ' वहनि वर्षातानि, 'बहूइ वाससहस्साद' बहुनि वर्षमवाणि, जय भद्दा) ह नन्द-मनुष्यों को अपार आनद प्रदान करनेवाले स्वामिन ' आपकी जय हो जय हो । हे भद्र ।-कल्याणम्वरूप । आप सदा विजयशाली रहे । (भद्द ते) आपका सदा कल्याण हो । (अजिय जिणाहि ) आपने जिसको नहीं जाता हो, उस पर विजन का । (निय च पालेहि) जिमको आपने जीता है उसका पालन करें। (जियमज्झं साहि) जीते हुए प्रदेश में मदा आपका निवाम रहे । (हदो इच देवाण, चमरो इव अमुराण, धरणो इव नागाण, चदो व ताराग, भरहो इव मणुयाण) देवों में चन्द्र की तरह, अमुर्ग में चमरेन्द्र की तरह, नागकुमागे मे धरणेन्द्र की तरह, तागओं मे चद्र की तरह और मनुष्यों में भरत की तरह आप (बहह वासादं यहई वाससयाट वहर्हि •तुति उता २मा प्रा उडवानी प्राम ज्यों (जय जय णदा जय जय भद्दा)
નદ-મનુષ્યને અપાર આનદ આપવાવાળા સ્વામિન્ ! આપની જય હો म्य । -स्या १३५ । माप महा वियशाली २ । । (भद्द ते) मापनु सही इस्या हो (अजिय जिणाहि) मापे ने न त्या डाय तना 6५२ विश्य भेगा (जिय च पालेहि) २ माघे त्या डेय तेभनु पालन । (जियमाझे घसाहि) मा प्रदेशमा महा आपने निवास २ (इदो इव देवाण, चमरो इन असुराण, धरणो इन नागाणं, चढो इव ताराण, भरहो इन मण्याण) देवोभा द्रनी भ, मसुरोभा यमरेनी भ, नागभागमा ઘણેકની જેમ, તાગમા ચદ્રની જેમ અને મનુષ્યમા ભગ્નની જેમ, मा५ (बहूई वासाइ वहई वाससयाइ गइ वासमहम्माइ) ! ५२मा भुषा,