________________
पीयुपनिणो-टीका स. ८९ भगवानार्थ पृणियम्य गमनम
लिहवत्त-मंडल-धुगणं आइण्ण-वर-तुरग-संपउत्ताणं कुसल-नरच्छेय-सारहि-सुसंपन्गहियाणं बत्तीस-तोण-परिमंडियाणं सकंकड़वडेंसगाणं सचाव-सर-पहरणा-वरण-भरिय-जुन्छ-सजाणं असयं मृतमयुगगाम् । 'आइग - घर - तुरग - संपउत्ताण' आकार्य - घरसुग्ग-मन्प्रयुक्तानाम् – योनितोत्तम जानिमदघोटकानाम्, 'अमर-नर-पय-सारहिमुसंपग्गहियाण' कुगर-ना-ठेक-सागर-मुमम्प्रगृहीतानाम्-सुगठनग चिनपुरमा एव ये डेका निपुणा माग्यय ते मुसम्प्रगृहीतानाम-मच्चारितानाम । 'यत्तीस-तोरण-परिमंडियाण' द्वारिंशत्तोरगरिमण्डिताना-तोग्णानि अर्थगर्तुगऽऽगगि द्वागितेंद्रात्रिंगमदायक तोग्ण पन्दनवार परिमण्टिताना, प्रनिग्य द्वात्रिंगदान्द्रनवागणि मन्तीनि मात्र । 'माटरटेंमगाण' मकाऽतमानाम्-कदया काचा , अपनमका गिरनागानि 'टोप' इति प्रसिद्धा , त युका मकदारतमका तेषाम्-'मचावसर-पहरणा-चरण-मरिय-जुद्ध-मनाना' मचाप-अर-प्रहमा-SSI]- मृत - युद्ध-मनानाम-चाप महिता शग, मचापाग प्रहग्णानिमगादीनि, आचरणानिहाई (आठण्ण-चर-तुरग सपउत्ताण) इनमें जो पोटे जोतन म आये ये र नहुन ही उत्तम जाति के थे । (कुमल-नर-य-मारहि-गुसंपग्गहियाण) इनके जो माग्यी ये वे अश्व चालन किया म पिटीर निपुग य य ही इन्हे चा रह य । (पत्तीम-तोरण-परिमडियाग) प्रयेक ग्यों पर वत्तीम २ वन्दनना भी दुई थीं। (मककडवटेंमगाण) उनम कवच और गिग्वाग-गोद के टोप मा गये हुए थे । (मचार-पर-पहरणा-चरणभरिप-जुद्र-मन्नाणं) रे मन ग्य चाप-अनुप, आर-बाग, प्रहग्ण हथियार [ भारग्ग-ढाल आदिका मे मंहुए , अन देखन वाला को मे माटम पटने ये कि मानो तमना घोसना मर भरत तमा
न त (माइण्ण नग्नुग्गमपउत्ताण) तमा नपामा माल्या ना त म त तिना हता (कुमल पर-र-मारहि-गुमपमाहियाण) तना माय ना त અથચાલન કિયાના વિશેષ નિપુણ હતા, તેઓ તેમને ચલાવતા હતા (बत्तीम-तोरण-परिमडिवाण) प्रत्ये. याना 64 पत्रीय पत्री वनमा पायी जी (मास्टरमगाण) तभा पय मने शिप्राr-adlना टा५ पर्य गणेता उता (म-चार-सर-पहरणा-गण-मग्यि-जुद्ध-मरनाण) से गया 4 ચાપ-વનુપ, શરઆણું, પ્રહરવું-હથિયાર તેમજ આવ- દાલ આદિથી