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औपातिकमरे पुलिय-चल-चवल चंचल-गईणं लंघण-वग्गण-धावण-धोरण-तिबई-जइण-सिरिखय-गईणं ललंत-लाम-गललाय-वर-भूसणाणं मुहकुसुमविशेष 'चेली' इतिरयातस्तद्वदक्षिणी येषा ते तथा तेपा, 'चचु-निय ललियपुलिय-चल-चवल-चचल-गईण'चन्च-चित-ललित-पुस्ति-च-चपल चञ्चल-गतीनाम्, चञ्चु =शुरुचञ्चु -तद्वयकतया उधित चरणयोरु थापन तेन ललित-सविलाम यत् पुलित-गमनविशेष -तद्पा-चलानांबातिमता चपलचञ्चला=अतिचाला, यद्वा चपलाविद्युत् , तद्वचञ्चला गतिर्येपा ते तथा तेपा, चक्रपदोपगमनविशेषाऽतिशयचधलगमनवताम् , 'लघण-घागण-धावण-धोरण-तिबई-जडण-सिक्ग्विय-गईणं लान बन्गन धावनधोरग-त्रिपदी-जयिनी-शिक्षित-गतीनाम लधन-गदिस्लधनम्, वगनम्-उत्कूदनम् , धावन शीप्रमृजुगमनम् , धोरण-गतिचातुर्यम् , त्रिपनी भूमौ पदनयन्यास , जयिनीजयिन्यारख्या अतितीवगति , एता शिक्षिता अभ्यस्ता गतयो यस्ते तथा तेषाम् । 'ललत-लाम-गललाय-वर-भूसणाण' लल-लामद्-गललात-वर-भूषणानाम्-ललन्तिदोलायमानानि, लामन्तिम रम्यागि, गललातानि श्रीमास्थितानि वरभूपणानि येपा ते तथा तेपा, चञ्चलमुन्दरग्रीवाभरणकली एव मल्लिकापुष्प-वेला के फूल के समान आसोंवाले थे । (चचु-च्चिय-ललिय-पुलियचल-चवल-चचल-गईण) शुरु की चचु के समान वक पैर उठा कर सविलास चलने के कारण वे बहुत भले मालूम होते थे, तथा चलने में बिजली के समान चचल थे । (लंघण वग्गण-धावण-धोरण-तिबई-जइण-सिक्खियगईण) लघन-खङ्ग आदि का लाधना, वल्गन-कूदना, धावन-शीघ्रतापूर्वक दौडना, धोरण-सूगर के समान नीचे सिर कर के दौडना, त्रिपदी-तीन पैरों से खडा होना, जयिनी-अतितीवं, चालका चलना,-इन सनों में ये अतिनिपुण थे। (ललत-लाम-गललाय-पर- सणाण) इनके गले में जो आभूषण थे वे इधर उधर हिलते डुलते थे और बहुत ही सुन्दर थे। (मुहभंडग-भोचूलग-थासग अहिपाप u (चंचु चिय-ललिय पुलिय चल चल चल गईण) पोपटनी यायनी જેમ વાકા પગ ઉપાડીને વિલાસ કરતા ચાલવાના કારણે તેઓ બહુ ભલા साता sal, तथा यासपामा विपीनी पडे यया ॥ (लघण-वग्गण धावण-धोरण तिगई जइण मिक्खिय गईण) धन-११ माहिने साधषु (५७) વગન-કૂદવું, ધાવન-ઝડપથી દેહવું, ધોરણ-સૂકરની પેઠે નીચુ માથુ રાખી દેડવુ, ત્રિપદી-ત્રણ પગે ઉભા રહેવું, જયિની–અતિ” ઝડપવાળા ચાલથી यासमा अधाभा तमा निधु ता (ललत-लाम गललाय-वर भूसणाण) તેમના ગળામાં જે આભૂષણ હતા તે આમતેમ હાલતા-ડાલતા હતા અને