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पपिपिणी टीका मु ८८ कूणिम्य ज्यायामादिविधि समाणे तेलचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमल-तलेहि पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पटेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउण'अभिगेहि ' अभ्यङ्ग-ग्नेनै 'अभिगिए ममाणे ' अभ्यह्नित --मताभ्यन मन् ‘तेलचम्ममि' तेलचर्मणा, अब तृतीया) मममा, तलानुलिमारीरस्य मर्दनमाधनरूप चर्म 'तैलचर्म' इयुच्यते, 'मवाहिए समाणे ' मवाहित मन-दयुत्तरेण अन्वय , के नाहित दयाह- पुरिमेहि पुस्पै -अजम्बाहननियुक्तमृन्यै , ते की ग्त्यिाह'पडिपुण्या-पाणिपाय-गुउमाल-कोमल-तळेहि प्रतिपूर्ण-पाणिपाद-मुकुमार-कोमलतलै --प्रतिपुर्णानाम अधिकलगना, पाणिपादाना सुकुमारकोमलानि-अतिमदुलानि तानि येपा ते तथा ते , 'एहि कैमर्दनकानिपुण , 'ढक्खेहि दक्षे अविलम्बितकानिभ , मर्दन कार्य प्रेम, 'पढेहि प्रष्ट, 'कुमलेहि कुशले मर्दनविधिने , 'मेहाबीहिं' मेगाविभि -प्रतिभाशालिभि , 'निउण-सिप्पो-वगएहि निपुणशिल्पोपगते , उवटनों से (अभिगिए समाणे) शरीर की ग्यूब मालिश करवाई। *(तेलचम्मंसि) तैल. चर्ममे माल्मि कग्नगार (पुरिसेहिं) पुम्पा न कि जिनके (पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुरमाल-तले) हाथ और पैर के तलवे अधिक युकुमार थे, (न्नएहि) मर्दन करनेकी कला में जो अधिक निपुण थे, (दक्सहिं ) इसीलिये जो टम कला के जाननेगलों में सर्वप्रथम गिन जाते थे, (पटेहि। मनन करन का विधि क्या है और किम ढग से किस समय कैसा मन करना चाहिये-टयादि गाता में जो विशेष पटु थे, ( मेहाबीहिं) नवीन २ रीति में
___ * यहा तृतीया क अर्थ म सममा विभक्ति हुई है, तैल से चिकन हुए शरीर को मर्दन करने का साधनरूप चर्म तेलचर्म रहलाता है। . हेपाया॥ य है, मेघा तatथी, तथा (अभिगेर्हि) पटनायी (अभिगिए समाणे ) startी भृ५ भासिए पी (तेलचम्मसि) तसया मालिश २५पासा (पुरिमहि) ५३५. ना (पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-तलेह) હાથ તથા પગના તળ બહુ સુકુમાર કેમળ હતા, (૬) મર્દન ૦રવાની
मारे महु निपुण हता, (दरसेहि) माथी २ मा जान onारमा मम माता हता, ( पट्टेहि ) मन पानी विधि शुअने पी રીતે કેવા સમયે કેમ મર્દન કરવું જોઈએ-ઈત્યાદિ વાતો જે વિશેષ पुण खता, (मेहानीहिं) नवी नवी ते २ महल ४२वानी sell मावि
[૨] અહી તૃતીયાના અર્થમા અસમ વિભકિત થઇ છે તેલથી ચશ્ના થયેલ શરીરને મર્દન કવ્વાનુ માધનરૂપ ચમ તેલચર્મ કહેવાય છે