________________
३८६
সাথমিক
-
जाव-सण्णाहिय पासड. सुभदापमुहाणं देवीणं पडिजाणाई उवट्ठवियाई पामड, चंपंणयरि सम्भितर जाव गंधवहिभूयं कयं पासड, पासित्ता हतुदृचित्तमाणदिए पीयमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता
'स्थ-प्रवग्योध-कलिता च चतुरङ्गिणी सेनाम्' इति दृश्यम् , 'मुभापमुहाण देवीण' मुभद्राप्रमुग्याणा--मुभद्रादीना देवाना 'पडिजाणार उपद्ववियाह । प्रतियानानि-अकटानि उपस्थापितानि 'पासह ' प-यति, 'चंप गरि समितर जार गधचटिभूय कय पासद' चम्पा नगा माऽभ्यन्तरा याद गन्धपनिभृता कृता प.यति, दृश्य हट्ठ-तुद-चित्तमाणदिए । इष्टतुरचित्ताऽऽनन्दित 'पीयमणे नाव हियए' प्रीतमना यावद् हृदयो 'जेणेव ऋणिए राया भभसारपुत्ते' यव कृणिो राजा भभसारपुत्र , 'तेणेत्र उबागच्छद' तौयोपागच्छति, 'उवागन्छिता' उपागत्य 'करयल जाव एव वयासी' पडिजाणार उपवियाई पासइ) सुभद्राप्रमुस देविया के लिये आये हुए ग्या को भी देगा। (चप गरि सम्भितर जाव गवटिभूयं कय पासह) और यह मा दया कि चपानगा भातर वाहिर से अच्छी तरह से स्वच्छ हो चुकी है, पव उमस मुगधि का महक उठ रहा है । (पासित्ता हट्ठ-तुटु-चित्त-माणदिए पीयमणे जाव हियए जेणेर कणिए राया भभसारपुत्ते नेणेव उवागड) यह सन देखकर वह बहुत ही सुश हुआ हर्ष के मारे वह फूल नहीं ममाया । प्रसन्न मन होकर यह गारी जहा श्रेगिक के पुत्र कृगिक राजा थे वहा पहुँचा । (उवागच्छित्ता करयल जाव एव वयामी) पहुँचकर उसन सर्वप्रथम राजा को दो हाथ जोटकर प्रणाम किया और
मनाने ५५ ५।२४ ४ (सुभद्दापमुहाण देवीण पडिजाणाइ उवदृषियाइ पासइ) मुखद्राप्रभु देवी-मान माटे मावा रथाने पण या (चप गरि सभितर जाच गहिभूय कय पासइ) मले से पशु यु पानगरी અ દર અને બહારથી સારી રીતે સ્વ-છ થઈ ગઈ છે, તેમજ તેમાથી સુગપીની भर यासी रही छे (पामित्ता हट्ट-तुटु-चित्त-माणदिए पीयमणे जाव हियए जेणेव वृणि राया ममसारपुत्ते तेणेव उवागन्छइ) मा मधुमेधने त Y ખુશ છે અને અત્યંત હર્ષિત થઈ ગયે મન પ્રસન્ન થવાથી તુરત જ MAR लिना पुनधि४ २० ता त्या पायो (स्वाछित्ता परयल जाव