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औपपातिसूत्रे
लंकिय- सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिस्खमड, पडिणिक्खमित्ता चंपायरिं मझमज्झेणं जेणेव बाहिरिया सा चैव हेहिला वतचखम पडिगिक व मित्ता' प्रतिनिष्कागति, प्रतिनिष्धन्य,'चपागयरिं मन्यंमज्जेण 'चम्पानगया मध्यमध्येन, 'जेणेव बाहिरिया'यनैव बाला उपस्थानमा ना.' सा ने हेडिया त्तिव्या संवा धस्ताद वक्तयता, अर्थात्-नैन राज कोगिक ग्रह यागिको राजा भम्भमारपुनन्त
पागच्छति, उपाय करतरपरिगृहीत गिरभावतं मस्तकेsafe कृपा जयेन विजयेन वर्धयति, वर्धयिला एवमवादीत् = भगवत ममनसरण सविस्तर निगदितवान् तदनु भूपो भगवदागमन त्वा तु सन् सिंहासनादु याय गजचिह्नानि परिभाष्टपदानि गना भार वाले तथा बहुमूल्य आभरणों से अलग्न गरीर होकर (सयाओ गिहाओ पडिfuran) अपने घर से निकला (पडिणिक्यमित्ता) निकलकर (चपाणयरिं मज्झमण ) ठीक चपा नगरा के बीचोनीच मार्ग से होता हुआ, (जेणेव बाहिरिया सा चैव हेट्टिला aroor जार सिया) जहा नीचे बाहिर का ओर उपम्यानमाला थी, एच जहा राजा कोगिक का ग्रह था, तथा जहा पर वे विराजमान थे, वहा पर यह पहुँचा, पहुॅचकर दोना हाथा को जोड़कर उसने कोणिक नरेशको सादर नमस्कार किया, पश्चात् आपकी जय हो और विजय हो - इस रूपसे उन्हें बधाई दी। बधाई दे चुकने के अनन्तर फिर उसने 'ह राजन् ' आज श्रमण भगवान महावीर प्रभु चपानगरी के पूर्णभद्र उद्यान में समवसृत हुए है'इत्यादि विस्तृत रूप से भगवान् के समवसरण का वृत्तान्त कहा। राजा ने जब प्रभु के आगमन का वृत्तान्त सुना तब वे भी चित्त में अधिक प्रसन्न एव स्तुष्ट हुए । मारे हर्ष के
महु भूत्यवाना भालरशोथी शरीरने शथुगारीने ते (सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ) घोताना घेरथी नील्या, (पडिणिक्खमित्ता) नीडजीने (चपाणयरि मज्झमज्झेण) रा भरच भानगरीनी वस्थवस्थ भागे थधने (जेणेव बाहिरिया सा चैव हट्ठिल्ला चन्त व्वया जाव णिसीयइ ) क्या नीचे महारनी तर ते उपस्थानभासा हुती तेन क्या રાજ્ય કણિકનું ગૃહ હતુ તથા ત્યા તે વિરાજમાન હતા ત્યા પહેાએ, પહેાચીને અને હાથ જોડીને તેણે કૈાણિક નરેશને સાદર નમસ્કાર કર્યા પછી આપની જય થાવા તથા વિજય થાવા એ રૂપે તેણે વધાઇ આપી વધાઈ દઈ ચુયા પછી તેણે કહ્યુ, હું રાજન્ ' આજે શ્રમણુ ભગવાન મહાવીર પ્રભુ ચપાનગરીના પૂર્ણ ભદ્ર ઉદ્યાનમા સમવયુક્ત થયા છે આ પ્રકારે તેણે વિસ્તૃતરૂપથી ભગવાનના સમવસરણના વૃત્તાન્ત કો રાજાએ જ્યારે પ્રભુના આગમને વૃતાન્ત સાભળ્યો ત્યારે તે પણ મનમા બહુ પ્રસન્ન તેમજ સતુષ્ટ થયા આનંદમાં આવી