________________
३४०
জীবশিক্ষন
-
-
कणग-वण्णा, जे य गहा जाइसंमि चारं चरंति केऊ यगइरइया अहावीसविहा य णक्खत्तदेवगणा णाणा-संठाण-संठियाओ य चार चरन्ति-उक्तातिरिक्ता ये ग्रहा योनि-योनिथक चकरदयमासमान ज्योतिमण्डले भमण कुर्वन्ति । यदुनाद बहुवचनम् । 'केय गहरइया' केनपश्च गनिचिता - केतवो-जलके वादय , किम्भूता - अहनिरचिता --मनु पकाइरेक्षया गनिमन्त । 'अट्ठावीसविहा य णखत्त-देव-गणां' अष्टाकिंगनिनिधाध नहनदेवगगा --अष्टारिंग तिनक्षत्रदेवता । अम्प्रसङ्गादन्येपामपि ज्योतिकदेवाना माया उच्यन्ते-ज्योतिष्कदेवा पश्चविधा भवन्ति, सूर्या १, चन्द्रमस २, प्रहा ३, नक्षत्राणि ४, प्रफीर्णतारकाच ५, तत्र द्वौ सूर्यो जम्बूद्वीपे, लपणे चवार , धातकीसण्डे दादा, कालोदधौ द्विचवारिंगत्, पुष्कराढ़े द्विसमति -इयेव मनुष्यलोके द्वात्रिंगढधिक गत सूर्या सन्ति, चन्द्रमसेाऽपि जो ग्रह ज्योतिश्चक में-चक्र की तरह प्रतिभासमान इस ज्योतिर्मण्डल्म-भ्रमण करते है वे (केज य गइरडया) जलकेतु आदि केतुग्रह, जो कि मनुष्यलोक की अपेक्षा ही सदा गतिविशिष्ट हैं। अर्थात् यह समस्त न्योतिश्चक इस मनुष्यलोक रूप ढाई द्वीप मे ही गति विशिष्ट है, अन्यत्र नहीं ! ( अट्ठावीसविहाय णक्खचदेवगणा) नथा जो अट्ठाईस (२८) प्रकार के नक्षत्र जाति के देवता है।
यहाँ पर प्रसगवश अन्य ज्योतिषी देवों की भी ज्या कहते है। ज्योतिषी देव पाँच प्रकार के है--सूर्य १, चन्द्रमा २, ग्रह ३, नक्षत्र ४, और प्रकीर्ण तारा ५। इन सनों में प्रयेक की संख्या इस प्रकार है-जम्बूद्वीप मे दो सूर्य है, लपण समुद्र मे चार सूर्य है, धातकीखण्ड मे बारह सूर्य है, कालोदधि मे वयालीस सूर्य है और पुष्कराई मे बहत्तर सूर्य है। इस प्रकार मनुष्यलोक में सूर्य की स्रया एक सौ बत्तीस है। चन्द्रमा की रपन्या વર્ણવેલાથી બીજા જે ગ્રહો નિશ્ચક્રમા-ચકની પેઠે પ્રતિભાસિત આ જ્યોતિ में उसभा-प्रमाण ४२ छ (फेऊ य गइरइया) तु तु मनुष्य લોકની અપેક્ષા જ હંમેશા ગતિ-વિશિષ્ટ છે અર્થાત-આ સમસ્ત વિશ્ચક
मा भनुष्य३५ मढी दीयम गतिविधि छ, मी नाहि (अट्ठा वीसपिहा य गक्सत्त-देवगणा) तथा २८ मारना नक्षत्र जतिना पता छ
અહી પ્રસગવદ બીજ તિવી દેવાની પણ સા ખ્યા કહે છે જ્યોતિથી દેવ પાચ પ્રકારના છે સૂર્ય ૧ ચદ્રમાં ૨ ગ્રહ ૩ નક્ષત્ર ૪ તથા પ્રકીર્ણ તારા ૫ આ બધામાં પ્રત્યેકની મખ્યા આ પ્રકારે છે–જ બુદ્વીપમાં ૨ સૂર્ય છે. લવણ સમુદ્રમાં ચાર સૂર્ય છે ધાતકીખ ડમાં ૧૨ સૂર્યો છે કાલેદધિમાં ૪૨ સૂર્ય છે તથા પુષ્કરાદ્ધમાં ૭ર સૂર્ય કે આ પ્રકારે મનુષ્યલોકમાં