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पोयूपयषिणो-टीका सू ३३ असुरकुमारदेवयर्णनम
___३२० साड असंकिलिहाई सुहमाई वत्थाइ पवरपरिहिया, वयं च पढमं समडकंता विडय च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे वट्टमाणा, तलभंगयघृष्टच दनचर्चितगगग । अथ वनवियपणान्याह-दमी मिलिंप-पुप्फ-पगामाटेपत् मिली
पुन्यप्रायानि मनामित्री प्रमुमप्रभागि-पतसितानी यर्थ , मिठी मुसुम--वर्पती भूमिभित्या उपकमिव बहिनिम्मरति,मता तर तु गत कुसुम रक्तवर्णमेव ग्राहा यतोऽसुगरक्तपमना प्रायो भातानि । पुन कीदृशानि वस्त्राणि अाऽऽऽ 'मुटुमाई मूहमाणिा अस किलिट्ठाइ' असजिष्टानि-वृषणरहितानि। 'वत्थाई' ययागि-'पवरपरिहिया' प्रवरपरिरहता -प्रवरम्- उन्कृष्ट यया तथा परिहिता -पग्धितरन्त । 'वय च पढम समटकता' वयश्च प्रथमम्=पोटशवर्षपर्यइनका समस्त शरीर लिम या । (सी-सिलिंध-पुप्फ-प्पगसार) दोन जो वस्त्र पहिन रखे 4 वे उर कम मफट थे, जैसे सिलीध्र पुप्पका प्रकाश होता है वैसा ही उनका प्रकार था। वपाझतु मे जमीन को फोड कर उन के आकार जैसा जो पुष्प उपन्न होता है उसका नाम मिरीय है । किन्हीं २ का मत है कि यह पुप्प रक्तवर्ण भी होता है । अत इसके ग्रहण से उनके वस्त्र रक्तवर्ण के ये ऐमा ही समझना चाहिये । क्यों कि असुर जाति के देव प्राय लालपत्र वारण करने वाले होते हैं । (महमाई) ये वस्त्र-जिन्हे उन्होंने पहिन ग्मे थे, अयन्त मत्म-पतले थे, (असफिलिट्ठाद) और दापरहित थे। (वत्थाई पचरपरिहिया) ऐसे वस्त्र उन्होंने अग्छी तरह से अपन शरीर पर धारण कर रखे थे । (वयं च पढम समदरस्ता ) प्रथम वय को ये उल्ड्य न कर चुके थे, अर्थात् ये सन सोलह वर्प मे ऊपर के जैसे माल्टम होते આ (ભીના) ચન્દન (સૂખડ) વળે તેમના આખા શરીર લિપ્ત હતા ( इसी-मिलिंच-पुप्फ-प्पगासाइ) तयाये २ वा पडेया हुता ते કઈ ઓછા સફેદ હતા જેવો સિલીન્દ્ર પુષ્પનો પ્રકાશ હોય છે તે જ તેમને પ્રકાશ હોતે વર્ષાઋતુમાં જમીનને કાઠીને છત્રના આકાર જેવા જે પુષ્પ ઉત્પન્ન થાય છે તેનું નામ સિલીન્ડ છે કોઈ કાઈને મત છે કે આ પુષ્પ લાલરંગના થાય છે ત્યારે એ અર્થ ગ્રહણ કરવાથી તેમના વક લાલ ગના હતાએમ જ સમજવું જોઈએ કેમકે અસુર જાતિના દેવ ઘા કરીને લાલવસ્ત્ર धार ४२पापा डाय छ (सुहमाइ) पसरे साये पड़ा उता ते मत्यत सूक्ष्म-पाता ता (असकिलिडाइ) मने होपडित ता (वत्थाइ पवर परिहिया) सेवा पसी तमाय मागत पोताना २२ धारा ४ा तl (वय च पढम ममइस्कता) प्रथम क्यनु तेय. GAधन ४॥ यूट्या छता, मर्यात