________________
-
-
ફરર
औपपानिको मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउभवित्था, कालमहानील-सरिस-णील-गुलिय-गवल-अयसिकुसुम-प्पगासा विय____टीका-'तेण कालेण तेण समएण' इत्यादि । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमगस्य भगवतो महावीरस्य 'पहवे अमरकुमारा देवा अतिय पाउन्भवित्था' बहवोऽसुरकुमारा देवा अन्तिक प्रादुरभूवन्-भगरत श्रीमहावीरस्वामिनोऽतिक-समीपमागय प्रादुर्भूता । असुरकुमाराणा वर्णनमाह-काल-महानील-सरिस-णील-गुलिय-गवल-अय सिकुसुम-प्पगासा' काल-महानील सदश नील-गुलिक गालाऽनसीकुसुम प्रकागा-कालो यो महानीलो-मणिविशेष , त सदृशा वर्णतो ये ते तथा, पुनीलो मणिविशेष , गुलिका-नीलीगुटिका, गवर=माहिप शङ्गम् , अतसीमुम च, एतेपा प्रभाग इव प्रकाशो येषा ते तथा । 'वियसिय-सयवत्तमिर' विकसितशतपत्रमिव प्रफुल्लेन्दीरवरतुन्य 'पत्तल-गिम्मला-ईसी
'तेण कालेण तेण समएण' इत्यादि ।
इस सूत्रद्वारा सूत्रकार श्रमण भगवान महावीर के निकट आये हुए असुरकुमार देवों का वर्णन करते है- (तेण कालेण तेण समएण) उस काल एव उस समय में (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान महावीर के (अतिय) समीप (बहवे) अनेक (असुरकुमारादेवा) असुरकुमार देव (पाउन्भवित्था) प्रकट हुए। (काल-महानीलसरिस-णील गुलिय-गवल-अयसिकुसुम-प्पगासा) कृष्ण महानील मणि, नीलमणि, गुलिका, भैस के साग के अन्दरका भाग, अल्सीका फूल, इन सबों के समान ये असुरकुमार कृष्णवणे थे। (वियसियसयवत्तमिव) विकसित गतपत्र के समान अर्थात् इन्दीवर-कमल-के तुल्य
" तेण कालेण तेण समएण" त्यादि
આ સૂત્ર દ્વારા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની પાસે આવેલા અસુરअभार वोनु पनि ४२वामा मा छ (तेण कालेण तेण समएण) ते ४ त समयने विष (समणरस भगवओ महावीरस्स) श्रभर लगवान महावीरनी (अतिय) पासे (वह) मने (असुरकुमारा देवा) असुरभार हेव (पाउन्भवित्था) प्रगट थया तमना शरीरनी १ ४९ छ-(काल-महानील-सरिस णील गुलिय-गवल अयसिकुसुम-प्पगासा) ३१ भडानla मणि, नीलमणि, गुति, लेसना शागહાની અદરને ભાગ અને અળશીના ફૂલ, આ સર્વની સમાન તે અસુરકુમાર ४८९ वर्ष न उता (पियसियसयरचमिव) विसेमा शतपत्राना समान, मात