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औपपातिक
मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ . महावीरस्स अंतेवासी वहवे अणगारा भगवंतो, इरियासमिया त्वाद् अनिनादिवचनत्वाचेति भाव । जिणा इव अवितह वागरमाणा' जिना इव अवितथ व्याकुर्मागा - जिनवद् याथातय्येन यद्वस्तु यादृगेन तथा कथयन्त 'संजमेण' सयमेन - सावययोगनिरमणलक्षणेन 'तरसा' तपसा 'अप्पाण भावेमाणा विहरति आत्मानं भावयन्तो विहरन्ति ॥ सु० २६ ॥
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टीका- 'तेण कालेणं' इत्यादि । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमगस्य भगवतो महावीरस्य अन्तेवासिनो बहवोऽनगारा, 'भगवते' भगवन्त - पयमशोभावन्त, 'इरियासमिया' ईर्यासमिता ईरण- गमनमीर्या, तस्या समिता पम्यक्प्रवृत्ता गमने ( जिणा इन अवितह वागरमाणा ) जिन - सर्वज्ञ - प्रभु जिस प्रकार यथार्थ की प्रेरूपा करते है उसी प्रकार ये भी अतिथ जो वस्तु जैसी थी उसी तरह से उसकी व्याख्या करने वाले थे । (सजमेण तवसा अप्पाण भाषेमाणा विहरति ) ये सब के - सब साधुजन सावद्ययोगविरमणलक्षणरूप १७ प्रकार के सयम से एव अनशनादि १२ प्रकार के तप से आत्मा को भावित करते हुए प्रभु के साथ विचरते थे ||मू० २६|| ' तेण कालेन तेग समण ' इत्यादि --- ( तेण कालेन तेण समएण ) उस काल और उस समय में ( समणस भगओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के ( अतेवासी ) पास में रहनेवाले ( बहवे अणगारा भगवंतो ) सभी अनगार भगवान ( इरियासमिया ) 1 ईर्यासमिति से युक्त थे, अर्थात् अन्य जीवों की किसी भी प्रकार से विराधना न सर्वज्ञ नेवा हुता (जिगा इव अवितह वागरमा णा) नि-सर्वज्ञ-प्रभु के अठारे યથાની પ્રરૂપણા કરે છે તેજ પ્રકારે તે પણ અવિતથ-જે વસ્તુ જેવી ती तेवी तथा तेनी व्याच्या उरनारा हता (सजमेणं तवसा अप्पाणं भावे माणा विहरंति) तेथेो तमाम साधुना सावद्ययोग विरभणु सक्ष३५ १७ પ્રકારના સ યમથી તેમ જ અનશન આદિ ૧૨ પ્રકારના તપથી આત્માને ભાવિત દ્વરતા કરતા પ્રભુની સાથે વિચરતા હતા (સ્૦ ૨૬)
" तेण कालेन तेण समएण " त्यादि
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( तेण कालेन तेणं समएण ) ते जण अने ते सभयभा (समणस्स भगवओ महावीररस ) श्रभाणु भगवान् महावीरना (अतेवासी) पासे रहेवावाजा ( हवे अणगारा भगवतेा ) धा अनगार भगवान ( इरियासमिया ) र्यासभिति