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ओपपातिक मूलम-तेसिणंभगवंताणंआयावायावि विदिता भवंति, परवाया वि विदिता भवंति, आयावायं जमइत्ता नलवणमिव
टीका-तेसि ण भगताण' इत्यादि । तेया गल श्रीमहापरिशियाणा भगवता-सयमविभूपितानाम् 'आयाया नि' आ मादा अपि-स्वमिमान्तवादा अपिआईतवादा भपी यर्थ , विदिता-निनाता भवन्ति, 'परसायानि विदिता भवति' परवादा भपि विदिता भवन्ति-परेपा-गास्यादीना पादा-गतानि विदिता भवन्ति, स्वपर-- निवृत्तिरूप सयममे ये सदा सलग्न रहते थे। (दता) दान्त थे, अर्थात् इन्द्रिय और नोइन्द्रिय-मन के दमन करनेवाले थे । (इगमेव गिग्गय पारयण पुरओकाउ विहरति) ये मुनिजन इसी निर्घन्य प्रवचनको आगे रगकर विचरते थे, अर्थात् इनकी सब प्रवृत्ति आगमानुकुल ही होती थी । सू० २५ ॥
'तेसि ण भगवताण' इत्यादि
(तेसि णं भगवताण) भगवान् महावीर के सयम से विभूषित उन शिष्यों के (आयावाया वि) आत्मवाद-स्वसिद्धान्तप्रतिपादित -आईतवाद भी (विदिता भवंति) विदित था, अर्थात् भगवान् महावीर के ये शिष्य स्वसिद्धान्त-प्रतिपादिततत्यों के पूर्ण ज्ञाता थे । ( परवाया वि विदिता भवति ) तथा शास्यादिकों का क्या सिद्धान्त है, यह भी इन्हे विदित था। मतलन कहने का यह है कि ये मुनिजन स्वपरसिद्धान्त के पूर्णवेत्ता थे। ऐसा कोई भी सिद्धान्त नहीं था जो इनकी
अर्थात् द्रिय ४२ नद्रियनु भन ४२वावा उत्ता, (इणमेव जिगंध पाययणं पुरओ काउ विहरति) ते मुनिशन मा निन्य अपयनने माग રાખીને વિચરતા હતા, અર્થાત્ તેમની સર્વે પ્રવૃત્તિ આગમને અનુકુળ જ थती उती (सू २५)
'तेसि ण भगवताण त्याह
(तेसि ण भगवताण) सयमथी विभूषित भगवान महावीरन त शिध्या (आयावायावि) यात्मवाह-वसिद्धात-प्रतिपादित तत्व-यातवाह पर (विदिता भवति) सगुता ता, यर्थात् लगवान महावीरन ते शिष्ये। स्वसिद्धातप्रतिपाति तत्वाना से पूर्ण सात ता (परवायावि विदिता भवति) તથા શાકય આદિકેને શુ સિદ્ધાત છે તે પણ તેઓ જાણતા હતા કહેવા મતલબ એ છે કે તે મુનિજને સ્વપર-સિદ્ધાતના પૂર્ણ જ્ઞાતા હતા એવો કોઈ પણ સિદ્ધાત નહેત કે જે તેમની નજર બહાર હોય હજુ તેઓ કેવા