________________
१७४
औपपातिकतरे
-
चरित्तसंपण्णा लज्जासंपण्णा लाघवसंपपणा ओयंसी तेयंसी यसपण्णा' विनयसम्पना -विनीयतेऽपनीयते- सालेगकारसमष्टविन कर्म येन स विनय - अभ्युत्थानादि-गुरुसेवालक्षण तेन युक्ता , 'णाणसपण्णा' ज्ञानसपना , ज्ञान-श्रुतचारित्रलक्षण तेन युक्ता , 'दसणसपण्णा' दर्शनसम्पना-दर्शन-सम्यक्त्व तेन युक्ता 'चरित्त सपण्णा' चरित्रसम्पन्ना चरित्र-समितिगुप्यारि क तेन युक्ता ,लन्नासपण्णा' लग्जा-सम्पन्ना लज्जा-सयमनिराधनाया हृदयसकोचरूपा तया युक्ता , 'लाघवसपण्णा' लापसम्पन्ना लाघव द्रव्यतो अल्पोपधिता, भावतो गौरवनयत्याग -तेन युक्ता , 'ओयसी' ओजस्विन,
ओजो-मानसी शक्तिस्तदन्त , तेयसी तेजस्विन-सेज अन्तर्बहिर्देदीप्यमान र तेजोलेश्यादि वा तद्वन्त , 'वचसी' वचस्तिन , वच --आदेयवचन-सौभाग्याधुपेतमेपामस्तीति ते वचस्विन , अपनीत-नष्ट होता है वह विनय है, ऐसे विनय से युक्त थे। गुरुओं के आने एव जाने आदि पर खड़े होना इत्यादिक क्रियाएँ सब विनय के ही अन्तर्गत हैं। (णाणसपण्णा) विशिष्टज्ञान से मपन्न थे। (दसण-सपण्णा) विशिष्टदर्शनसे-सम्यक्त्व से सपन्न थे। (चरित्तसपण्णा) समिति-गुमि-आदिरूप चारित से सपन्न थे। (लज्जासपन्ना) सयमविराधनामे जो स्वाभाविक हृदयका मकोच उसे लन्ना कहते हैं, उससे वे युक्त थे। (लाघवसपण्णा) अन्प-उपधिरूप द्रव्यलाघव एव तीन गौरवका परित्यागरूप भावलाधर से युक्त थे। (ओयसी) ये ओजस्वी थे, अर्थात् तप और सयम के प्रभाव से युक्त थे। (तेयसी) ये तेजस्वी थे, अर्थात् भीतर और बाहर देदीप्यमान थे, अथवा द्रव्यभावरूप तेजोलेश्या आदिसे युक्त थे। (वचसी) ये आदेयवचन से, અષ્ટવિધ કમલ અપનીત-નઈ થાય છે તેને વિનય કહે છે એવા વિનયથી યુક્ત હતા ગુરૂઓ આવે તેમ જ જાય ત્યારે ઉભા થવું વિગેરે ક્રિયાઓ अधा विनयनी । मतगत छ (णाणसपण्णा) विशिष्टज्ञानता (दसणसंपण्णा) विशिष्ट शनथा-सभ्यत्वथा संपन्नता (चरितसपण्णा) समितिशुसि-माहि३५ यात्रिथा सपन्न ता (लज्जासपण्णा) सयभपिराध નામા જે સ્વાભાવિક હદયને સ કેચ થાય તેને લજજા કહે છે તેનાથી યુક્ત हुता (लाधवसपण्णा) ८५-पधि३५ द्रव्यमा तमा न गोरखना परित्याग३५ लावसायी युत सतत (ओयसी) तसा की ता, सातत५ भने सयमन प्रसाqatt 8ता (तेयसी) तसा तेस्व उता અત અ દર અને બહાર દેદીપ્યમાન હતા, અથવા દ્રવ્યભાવરૂપ તે જેતેશ્યા माणित (घचसी) मा माध्ययन, अथवा त५ सयभना