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पीयूषषपिणी टीका सू २२ पूर्णमद्रोदयाने भगवदागमनम्
मूलम्-तए णं समणे भगवं महावीरे कलं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल कोमलु-म्मीलियम्मि अहपंडुरे पहाए रत्तासोग-प्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्वराग-सरिसे कम
टीका-'तए ण' दयादि । ततस्तदनन्तर ग्लु अमगो भगवान् महावीर 'कल्ल' कन्ये द्वितीयदिवसे 'पाउप्पभायाए रयणीए' प्रादुष्प्रभाताया प्रकटीभूत-प्रभाताया रजन्या 'फुल्लुप्पल-कमल-कोमलु-म्मीलियम्मि'फुलो-स्पल कमल-कोमलोन्मीलिते-फुल्ल-विकसित च तत्-उत्पल-पद्म, कमलश्च-चित्रमृग -हरिणविशेष, तयो कोमल-मृदकम् , उन्मीलितपत्राणा नयनयोधोन्मीलन यस्मिन् तत्तथा तम्मिन , र प्रभातविशेषणम् । 'अह' अथ-अनन्तर-रजनीपर्यवसानाऽनन्तरम्-'पडुरे' पाण्डेर-शुक्ले 'पभाए' प्रभात-पात काले, अथ सूर्यविशेषणान्याह-रत्तासोग' इत्यादि । 'रत्तासोग-प्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुजद्धराग-सरिसे' रक्ताऽगोक-प्रकाश-किंगुरु-गुरुमुग्म - गुञ्जाऽर्द्रराग-- सदृशे, रक्ताs केवली भगवान महावीर स्वामी मनह प्रकार के मयम से और बारह प्रकार के तप से अपनी आत्मा को भावते हुए जर विचरे, (तया ण) तर तुम निश्चय से (मम एयमह निवेदिनासि) मुझे यह समाचार निवेदित करना, (त्तिकुटु विसजिए ) ऐमा कहकर उसे विसर्जित कर दिया मू०२१॥
'तए ण' इत्यादि---
(तए ण) तदनन्तर (समणे भगव महावीरे) श्रमण भगवान् महावीर (कल्लं) दूसरे दिन (पाउप्पभायाए रयणीए) जिसमे प्रभात प्रकट हो चुका है ऐसी रजनी के होने पर (फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मीलियमि अहपडुरे पहाए) तथा फिसित कमलपत्रों एव चित्रमृग के नयनों का उन्मीलन जिममे हो चुका है ऐसे शुभ्र आभायुक्त प्रात काल के होने पर, तथा (रत्तासोग-प्पगास-फिंसुयઅને બાર પ્રકારના તપ વડે પિતાના આત્માને ભાવિત કશ્તા જ્યારે વિચરે (तया ण) त्यारे त ४३२ (मम एयमट्ठ निवेदिजासि) भने थे सभायार निवहन. ४२०० (त्तिकट्ट सिजिए) सेम ४डीने तेने विहाय ज्या [सू २१]
'तए ण' त्या
(तए ण) त्या२ पछी (समणे भगर महावीरे) श्रभा लगवान महावीर (कल्ल) भी हिपये (पाउप्पभायाए रयणीए) ते रात्रिनु नत्यारे प्रभात घट थयु, (फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलु-म्मीलियमि अहपडुरे पहाए) तथा વિકસેલા કમલપત્રો તેમજ ચિત્રમૃગના નયન જ્યારે ઉઘડી ચુક્યા હોય એવી शुल सामावाको प्रात ४ थयो, तथा ( रत्तासोग-पगास-किंसुय-सुयमुह