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________________ पोयूषवर्षिणी-टीका सू १९ तवृत्तान्तश्रवणेन कूणिकस्य हर्ष १११ मुलम्-तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते तस्स पवित्तिवाउयस्स अंतिए एयम सोचा णिसम्म हह-तु-जाव उयान ममवमर्तुकाम त एवं देवाणुप्पियाण पियट्ठयाए ' तदेव देवानुप्रियागा प्रियार्थनया उन्कण्ठाविषयचाउनुकूलार्थनया, एवम् अमुना प्रकारेग तद् वृत्तम् 'पिय णिवेदेमि' प्रिय-प्रीतिकारक निवेढयामि-मविनय कथयामीति भाव । 'पिय ते भवउ' प्रिय ते मरतु मू० १८॥ टीका-'तए ण से ऋणिए राया मंभसारपुत्ते' इत्यादि । तत = तदनन्तर खल्ल म कृगिको राजा मममारपुत्र 'तस्स पवित्तिवाउयरस अतिए' तस्य प्रवृत्तित्र्यापृतस्य भगवद्विहारनिवेदकम्य पुरुपस्य अन्तिके-समीपेन्तन्मुग्वादिति भाव , 'एयम' तमर्थम्-भगवदागमनरूपम्-'सोचा ध्रुवा-प्रगविषय 'कृवा, "णिसम्म' निगम्य-दृति वा 'हठ्ठन्तुद्ध-जाव-हियए' हा-तुष्ट-यावद्-हृदय हपनिचम्पानगरी के पूर्णमद्रचैय में पधारेंगे, (तं एव देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पिय णिवेटेमि पियं ते भवउ ) इमलिये ह देवानुप्रिय । मै आपको यह प्रिय आमहितकारी समाचार आपके हितके लिये मविनय निवेदन करता है। आपका कन्याण हो ॥ सू० १८॥ ___ 'तए ण से कूणिए राया' इयादि--- (तए णं मे कणिए राया मंमसारपुत्ते) उसके बाद भमसार का पुत्र वह कोगिक राजा (तस्स पवित्तिवाउयस्स अंतिए ) उम सदेशवाहक के मुख से (एयमट्ट सोचा) ' भगवान पार है ' इस कर्णप्रिय समाचार को सुनकर (णिसम्म ) और हृदय मे अच्छी तरह धारण कर (ट्ठ-तुद्ध-जाव-हियए) समोसरिउकामे ) भने य पानगीना पूल थत्यमा पधारशे (त एवं देवागुप्पियाणं पिय णिवेदेमि पिय ते भरउ) माथी पानुप्रिय । आपने આ પ્રિય આત્મહિતકારી સમાચાર આપના હિતને માટે સવિનય નિવેદન ४३ ७ मापनु अत्याधु यायो (स् १८) __ 'तए ण से कूणिए राया' इत्यादि (तए ण से कूणिए राया भंमसारपुत्ते) त्या२५ सालसाना पुत्र आ@ि४ २ (तस्स पवित्तिवाउयस्स अतिए) त मशवानी भुभयो (ण्यम सोचा) भगवान पधार्या से ४५प्रिय समाचार सालजीने (णिसम्म ) अन एयभा भागते धारण २ (ह-तुह-जाव-हियण)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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