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औषपातिकमरे लिय-पुंडरीय-णयणे कोआसिय-धवल-पत्तलच्छे गरुलायय-उज्जु __ तुंग-णासे उवचिय-सिलप्पवाल-विवफल-सण्णिभाहरोह्र पंडुर
ससि-सयल-विमल-णिम्सल-संख-गोक्खीर-फेण-कुंद-दगरय-मुणा
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भूयुक्त इत्यर्थ । 'अबदालिय-पुंडरीय णयणे' अदलित पुण्डरीक-नयन -अपलितेविकसिते, पुण्डरीके-श्वेतकमले डर नयने-नेरे यस्य स , विकसितश्चेतकमलमदृशनेत्र इति भाव । 'कोआसिय-धाल-पत्तलच्छे विकसित धवल-पालाऽक्ष कमलपद विकसिते धवले-श्वेते, परले--पदमयुक्ते, अभिमानो यस्य स , विशालनगानित्यर्थ । 'गरुला-यय-उज्जु-तुग-गासे' गरुदा-यव- तुग-नासिक -गरुटस्येव-गस्टपक्षिचञ्चुवदआयता-दीघा, मज्वी-सरला, तुङ्गा-उन्नता, नासिका यस्य स तथा, गरुडचञ्चुवीर्घसरलोचनासिकानान् इत्यर्थ । 'उचिय-सिलप्पाल-रिफल-सण्णिभा-हरोहे' उपचित शिलाप्रवाल बित्रफल-सन्निमाऽधरोष्ठ -उपचित कृतमस्कार यच्छिलाप्रपाल-विद्रुम, विम्बफल-रक्तातिरक्त तयो सन्निभ -सदृशो रस्न अधरोष्ठो यस्य स , अतिरक्तोष्टवान्इत्यर्थ । 'पडुर-ससि-सयल-विमल पिम्मल-सख-गीकावीर-फेण-कुद-दगरय मुणालिया-धवल-दतसेढी' माण्डर-गशि-शकल-विमल निर्मल-टाग्य गोक्षीर-फेन-कुन्ठ-ठककी पक्ति के समान काला, पतली और चिकनी भगवान की भौहें थीं । (अरदालिय- पुडरीय-णयणे) विकसित श्वेतकमल के ममान नेत्र थे। (कोआसियधवल-पत्तलरछे) वे नेत्र-विकसित, स्वच्छ एव पदमल-सुन्दर पीपी वाले थे । (गरुला-यय-उज्जु-तुग-णासे) गरड पक्षी की चचु समान दीर्घ, सरल एव उन्नत नासिका थी । ( उचिय-सिलपवाल-पिंधफल-सणिभाहरोहे) र स्कारयुक्त विद्रुम एव रक्तातिरक्त अतिशय लाल कुरफल के समान अधगेष्ठ था । (पडुर-ससिसयल-विमल-गिम्मल-मख-गोक्खीर-फेण-कुद-दगरय-मुगालिया-. ४ी, पातमी मन xिet सभरे ती ( अपदालिय-पुडरीय-णयणे) भीवेता श्वेत उभजन ने नेत्र ता (कोआमिय-धवल-पत्तलच्छे ) ते नर विसमा ७ तेभर ५६ (सुदर पाशुपाणी ) खत (गरला-ययT-तुग-णासे) ३७ पक्षीनी याय समान सामी १२० तेभर नासिका ती (उवचिय--सिलप्पबाल-चिंचपर मणिभा-हरोष्टे) सारयु વિક્રમ તેમજ રકતાતિરક્ત-અતિશય લાલ કુદુર ફલના જે અધરેષ્ઠ (8) तो ( पडुर-समिसयल-विमल-णिम्मल-सब-गोपीर-फेण--कुद-दग