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पीयूपवपिणो-टीका स. १६ भगयन्महापीरस्याप्रियर्णनम् . पमाणजुत्त-सवणे सुस्सवणे पीण-मंसल-कबोल देसभाए आणामिय-चाव-रुहल-किण्हव्भराड-तणु-कसिण-गिह-भमुहे अवदाभाव , 'गिबग-सम-ल-मट्ठ-बद्ध-सम-गिडाले निर्वग-सम-लष्ट- मृष्ट-चन्द्राईसम-ललाट तत्र-निर्वग-अतहित तया वगकिगरहित, सम-विषमतारहित, लट-सुन्दर,मृष्ट-शुद्ध चन्द्राऽईसमम्-अष्टमा-चन्द्र-मण्डलाऽऽकारम् , लाट-मालस्थल यम्य म, अष्टमीचन्द्र-मण्डल-समानाकार-सुन्दर ललाट-इति भाव । 'उडुवइ-पडिपुण्ण-सोम्मवयणे' उटुपति-प्रतिपूर्ण-मौम्यवदन उडुपति -गाग्यपूर्णचन्द्रस्तइत् परिपूर्ण-प्रमाममूहसम्मृत, सौम्य-सुन्दर, वदन-मुख यस्य म तथा, गारदपूर्णचन्द्र-समान-सुन्दर-मुख इत्यर्थ । 'अल्लीण-पमाणजुत्त-सवणे आलीन प्रमाणयुक्त-श्रवण -समुचितप्रमाणकर्गयुक्त , अत एव-'मुस्सवणे' मुश्रवण , योभनर्गवान् 'पीण-मसल-कवोल-देसभाए' पीन-मासलकपोल-देशभाग -पीनो-पुष्टौ, मासली मासपूर्णी कपोलदेशभागो-कपोलावयवी यस्य स तथा-सुपुष्टकपोच्युक्त इति भार । 'आणामिय-चाव रुटल-किण्हाभराट-तणुकसिण-णिद्ध-भमुहे' आनामित चाप-रचिर-कृष्णानराजि-तनु-कृष्ण-स्निग्ध-भू -आनामित
चाप चक्रीकृनधनु , तद्वदरचिर-सुन्दरे तथा कृष्णा-भ्रराजी इव श्याममेघपती इव ___ तनू-सूक्ष्मे, कृष्णेश्यामे, स्निग्धे-चिकणे- ध्रुवौ यस्य स तथा, वकृष्णमूदमचिक्कग
लह-मट्ठ-चदद्ध-सम-गिडाले ) भगवान का भालस्थल ब्रग के चिह्न मे रहित, विषमता मे वर्जित, सुन्दर, शुद्ध एव अष्टमी के चद्रमा के समान था । [ उडुवइ-पडिपुण्ण-सोम्मत्रयणे ] प्रमु का मुस शरद कतु के पूर्णचन्द्रमण्टल समान मुन्दर और आहादक था। [ अल्लीण-पमाण-जुत्त-सवणे ] कान प्रमागयुक्त थे। [ मुस्सवणे ] इमलिये भगवान मुन्दर कानवाले थे । (पीण-मसल-कवोल-टेसभाए) भगवान के पुष्ट एव भरे हुए सुन्दर कपोठ थे । (आणामिय-चाव-रुटल-फिण्डभराट-तणु-कसिण-गिद्ध-भमुहे ) वक्रित धनुप के समान सचिर, तथा कृष्णमेध
तु (णिव्यण-सम लट्ठ मट्ट चदद्ध-सम-णिडाले) लगवाननु साट नाना ચિહ્નથી રહિત, વિષમતાથી વર્જિત, સુંદર, શુદ્ધ તેમજ અષ્ટમીના ચદ્ર नारे तु (उडुपइ-पडिपुण्ण-सोम्म-चयणे ) प्रभुनु भुम २२४सतुना पूय द्रभ स ममान सुह२ तथा माइया तु (अल्लीण- पमाण-जुत्तसवणे) डान भापम२ उता (सस्सपणे) तथा भगवान सुहानवाणा जता (पाण-मसल कपोल-देसभाए) सपना पुष्ट तभी ससा सुह२ गाडी
ना (आणामिय-चार-इल-किण्हव्मराइ-तणु-कसिण-णिद्व-भमुह) 43 ययता ધનુષના જેમ રૂચિ, તથા કૃષ્ણમેઘ (કાળા વાદળા) ની હારના જેવી