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पोयपपिणो-टोका सू १६ भगवन्मदायीरस्वामियर्णनम् दए जीवदए वोहिदए धम्मदए धम्मदेसए धम्मनायए धम्म
मार्ग , तस्य दय -दाता, 'सरणदए । अरणढय -ारण-परित्राण कर्मरिपुवगीकृततया व्याकुलाना प्रागिना रनणस्थान या तम्य दय । 'जीवढए' जीवढय-जीवेपु-एकेद्रियादिसमस्तप्राणिषु दया-सइटमोचनल पणा यस्येति, यद्वा-जीवन्ति मुनयो येन स जीर -स्यमजीरित तस्य दय । 'बाहिदए । बोधिढय-बोधि-निनप्रणीतधर्ममूलमूता तत्वार्थश्रद्धानलक्ष्णसम्यग्दर्शनन्दपा तस्या दय । 'यम्मदए' धर्मदय -धर्म -दुर्गनिप्रपतजन्तुसरक्षणलक्षण श्रुतचाग्निामकन्तस्य व्य । 'धम्मदेसए' धर्मदेशक - धर्म =प्राप्रतिपादितलक्षगस्तस्य देशक =उपदेशक । 'धम्मनायए' धर्मनायक - व्याकुल हुए प्राणियों को प्रभु निर्भय स्थान के प्रदायक है, (जीवदए ) भगवान् की ढया केवल सजी पचेन्द्रिय नीवों तक ही सीमित (व्याम ) नहीं है किन्तु एकेन्द्रिय से टेकर समस्त सन्नी अमनी पचेन्द्रिय प्राणियोतक भी वह एकरस होकर यह रही है, इसलिये वे जीवदय है । अथवा-मुनिजन जिम जीवनसे जीते है ऐसा जो सयमरूप जीवित है उसके प्राता होने से प्रभुको जीपदय कहा गया है । (चोहिदए) भगवान ममकिनरूपी बोरको देने वाले है । (धम्मदए) दुर्गति में गिरते हुए प्राणियांफो जो धारण अर्थात् रक्षण करे वह श्रुतचारित्रात्मक धर्म ही धर्म है। भगवान उस धर्मक दाता है। (चम्मदेसए) भगवान् उक्तस्वरूप धर्मके उपदेशक है । (धम्मनायए) भगवान उस धर्मके नायक-नेता अर्थात् प्रभवस्थान है ।
g) કર્મરૂપી શત્રુઓથી વશ કરાએલા હવાના કારણે વ્યાકુલ થએલા प्राणिमाने प्रभु निर्भय याननी प्राय: छे (जीनदये) भगवाननी या કેવલ સન્ની પચે દ્રિય જીવો સુધી જ વ્યાસ (મર્યાદિત નથી, પર તુ એકેદિયથી માડીને સમસ્ત ચગી અસની પચેદ્રિય પ્રાણીઓ સુધી પણ તેઓ એનગ્ન થઈને વહે છે, તે માટે તેઓ જીવદય છે અથવા મુનિજન જેવુ જીવન જીવે છે તેવું આયમરૂપ જીવન જે છે તેના પ્રદાતા હોવાથી પ્રભુને ०१६य उडेसा छ (बोदिये) भगवान् समलित३पी माधने वापाका ( यम्मदए) गतिमा ५उता प्राश्मिाना 60 मर्यात् २क्षए। ४३ ते श्रुतस्यास्त्रिात्म धर्म र भगवान् त धना होता ले ( धम्मदेसए) भगवाने ७५२ ४९सा १३५ धर्मना उपदेश छ (वम्मनायए) भगवान ते धर्मना नायनेता अर्थात् प्रसपायान छे (धम्मसारही) सजवान धर्म३५