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________________ पीयूपयर्पिणी-टीका स १२ धारिणीयर्णनम् चारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव -णिउण-जुत्तोवयार-कुसला सुंदर-घण-जधण-वयण-कर-चरणपरिपूर्ण मौम्य वदन मुस यम्या सा तथा । 'सिंगारागारचाम्वेपा' शृङ्गाराऽऽगारचारपा, गृङ्गारम्य शृङ्गाग्रसस्य अगारमिव गृहमिव चार योभनो वेपो=नपथ्यववादिरचना यस्याः सा तथा । 'सगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलाससललिय-सलाम-णिउण-जुत्तोश्यार-कुसला'-सद्गत-त-हसित-भगित-निहितविलास-सललित-मनाप-निपुण-युक्तोपचार-कुगलग, पगतेयु-ममुचितेपु गत-हमितभगिन-पिहित-पिलास-सललित-म्लापेषु निपुणा, तर-गत=गमन गजहसादिनत्, हमित=स्मित, भणित-चचन कोकिल्पीणादिस्वरेण च युक्त, विहित चेष्टित, विलासोनेरचेष्टा, सलरितम्लाप --वक्रोक्त्यायलदांग्ण सहित परस्पग्भाषण, तेषु निपुणा-चतुरेत्यर्थ , तथा--युक्तोपचारेषु सयवहारेपु कुगला दक्षेन्यर्थः, ततः पदद्वयचन्द्रमा के समान निलकुल विमल था। [सिंगारागारचारुवेसा] इसका नेपथ्य अर्थात् वेप गृगार का धर था । [ सगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलाससललिय-संलाव-णिउण-जुत्तोवयार-कुसला] दसकी गति गज एव हसादिका की गति जैसी मनोमुग्धकारी थी, इसका स्मित बहुत सुन्दर था, एव इसका भाषण कोकिल और वीणा आदि के स्वर जैसा कर्णप्रिय था, इसकी चेष्टाएँ और विलास अति मनोहर थे, तथा सललितमलाप-परस्परमभाषण वक्रोक्ति आदि अल कारों से युक्त था । मतलब कहने का यह है कि यह इन गमनादिक क्रियाओं में विशेष चतुर यी । साथ २ योग्य सयवहारों म भी यह कुशल यी। [मुदर-थण-जयण-वयणशोलता यमा समान मिसटी निर्भ तु [सि गारा-गार-- चारुवेसा] तेना नेपथ्य अर्थात् २५ तो शानु ५२ हेतु (सगय गय हसिय भणिय विहिय पिलास सललिय सलाव णिउण जुत्तोवयार - कुसला) तेना ચાલ ગજ (હાથી) તેમ જ હસ આદિકની ગતિ જેવી મને મુગ્ધકારી હતી તેનું સ્મિત (હસવું) અતિ સુન્દર હતું તેની બોલી કેયલ અને વીણા આદિના સ્વર જેવા કર્ણપ્રિય હતા તેની ચેષ્ટાઓ અને વિલાસ અતિ મનહર હર તથા સલલિતસ લાપ-પરસ્પર સ ભાષણ–વક્રોકિત આદિ અલ - કારોવાળા હતા કહેવા મતલબ એ છે કે તે ગમન (ચાલ) આદિક ક્રિયાએમા બહુ ચતુર હતી સાથે સાથે ઉચિત સદ્વ્યવહારમાં પણ તે કુશ
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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