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औपपातिकसूत्रे
मूलम् तस्स णं कोणियस्स रन्नो धारिणी णामं देवी होत्था, सुकुमालपाणिपाया अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियस
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डिम्बडमरम् - विघ्नकलहाभ्या रहितम् एव यथा स्यात्तथा, एवभूत चा रज्ज राज्य - ' पसासेमाणे ' प्रशासत् - पालयन ' विहर: विहरति तिष्ठति ॥ सू ११ ॥
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टीका ---तस्स णं कोणियस्स रन्नो' तस्य सल कोगिकस्य राज ' धारिणी णाम देवी होत्था ' धारिणी नाम देवी - रात्री आसीत् सा धारिणा राज्ञी कीदृशी ? अत्रोच्यते--' सुकुमालपाणिपाया ' सुकुमारपाणिपादा-पानी च पादौ च पाणिपादम्, प्राण्यङ्गत्वादेकवद्भाव, तत सुकुमार = कोमल पाणिपाद यस्था सा तथा, सुकोमलकरचरणा । 'अहीण-पडिपुण्ण-पर्विदिय-सरीरा' अहीन परिपूर्ण-पञ्चेन्द्रिय-गगेरालक्षणतोऽहोनानि= सम्पूर्णलक्षणानि, स्वरूपत परिपूर्णानि=नातिहूस्वानि नातिदीर्घाणि अभाव भी इसलिये था कि ( सुभिक्ष ) ( पसातडिवडमर ) विघ्न और कलहका अथवा ऐसे [ रज्ज पसासेमाणे विहरइ ] राज्य करते थे ॥ सू० ११ ॥
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प्रकार का उपद्रव नहीं था । उपद्रव का इसमे लोगों को खाद्यसामग्री सुलभ थी यहाँ नाम भी नहीं था । इस प्रकार, राज्य का पालन करते हुए कोणिक राजा
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तस्स ण कोणियस्स रनो' इत्यादि,
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( तस्स ण कोणियस्स रनो ) उस कोणिक राजा की ( धारिणी णाम ) धारिणी नाम की ( देवी ) रानी ( होत्था ) थी । ( सुकुमालपाणिपाया ) इसके हाथ और पैर दोनों ही बडे सुकुमार थे । ( अहीण-पडिपुण्ण-पर्चिदिय-सरीरा ) इसका शरीर लक्षगसे अहीन एव स्वरूप से परिपूर्ण-न अतिहस्व और न अतिपशु भेटला भाटे तो (मुभिक्य) तेभा बोडीने भावानी सामग्री सुसल हृती (पसातडि बडमरं) विन भने सह (कुमानु નામ નિશાન જ नहोतु या प्रारे अथवा सेवा (रज्ञ पसामेमाणे विहरइ ) राज्यनु પાલન કરતા થકા કાણિક રાજા રાજ્ય કરતા હતા (સ્ ૧૧)
"तस ण कोणिस्स रण्णो" इत्याहि
(तस्स ण कोणिस्स रण्णो ) ते अणि शन्तनी (धारिणी णाम) धारिएनामनी (देवी) शशी (होत्था) उती (सुकुमाल - पाणि-पाया) तेना हाथ अने यग मन्नेय मडु पेपर (अभण) उता (अहीण-पडिपुण्ण-पचिदिय- सरीरा) तेनु शरीर વષોાથી અહીન તેમ જ સ્વરૂપથી પરિપૂર્ણ-બહુ નાનુ નહિ તેમ બહુ મોટુ