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________________ श्री अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रे १- सचित्ताणं दत्राणं विसरणयाए. २- अचिनाणं दव्वाणं अविउसरणाए, ३ - एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं, ४- चक्खुफासे अंजलिप्पग्गहेणं, ५- मणसों एगत्ती भावकरणेणं " इत्यादि । एवमन्येऽप्यागमा अनुसंधेयाः । १२ अथानुचरोपपातिकदशाङ्गस्य शब्दार्थः प्रदते उत्तराणि श्रेष्ठानि न सन्ति येभ्य इत्यनुत्तराणि विजय वैजयन्त- जयन्तापराजित - सर्वार्थसिद्धाभिधानि विमानानि तेषु उपपातः उत्पत्तिः स विद्यते येषां जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजते हैं, वहाँ कुणिक राजा आये, आकर श्रमण भगवान् महावीर को पांच प्रकार के अभिगमपूर्वक बन्दन करते हैं । वे पांच अभिगम निम्न प्रकार हैं(१) सचित्त द्रव्यों को दूर रखते हैं । (२) अचित्त द्रव्यों को धारण करते हैं । (३) एक शाटिक - बिना जोडवाले-कपडेका जयणा के लिये उत्तरासङ्ग करते हैं । ( ४ ) भगवान् के दृष्टिपथ होनेपर हाथ जोडते हैं । (५) मन को एकाग्र करते हैं । विशेष ज्ञान के लिये इसी प्रकार दूसरे आगमों में अनुसन्धान करना चाहिये । अब यहाँ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग का शब्दार्थ बताया जाता है- 'अन्' = नहीं, 'उत्तर = भ्रष्ट हैं, अन्य विमान जिन से, ऐसे विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध नामक विमानो में 'उतपात : ' = उत्पन्न होना, अर्थात् विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, और सर्वार्थसिद्ध नामक सर्वश्रेष्ठ विमानोंमें उत्पन्न होने वाले 'अनु જયા શ્રમણ ભગવન્ત મહાવીર બિરાજે છે ત્યા કુણિક રાજા આવ્યા આવીને ભગવાન મહાવીરને પાંચ પ્રકારના અભિગમપૂર્વક વન્દન કરે છે તે પાંચ અભિગમ નીચે મુજ છે – (१) सचेत द्रव्यो (यहार्थी) ने दूर राणे छे. (२) अयेत द्रव्याने धारण छे. (૩) એકશાટિક-સાંધા વિનાનુ એક સળગ આખુ કપડું, તેનું જયણા માટે ઉત્તરા સગ કરે છે (૪) ભગવાન દૃષ્ટિચર થતાંજ હાથ જોડે છે. (૫) મનને એકાગ્ર કરે છે. વિશેષ જ્ઞાન માટે આજ પ્રમાણે ખીજા આગમેામાં અનુસન્માન કરવું જોઈએ હવે અહિં અનુત્તરાપપાતિક દશાંગને શબ્દા બતાવવામાં આવે છે: अन्नही उत्तर=श्रेष्ठ अन्य विमान लेनाथी, मेवा विनय वैश्यन्त, भ्यन्त अपरान्ति, मने सर्वार्थसिद्ध नामना विमानमा 'उपपातः' उत्पन्न थर्वु - र्थात् विन्न्य, वैष्नयन्त, भयन्त, अपरान्ति भने सर्वार्थसिद्ध, नामना सर्वश्रेष्ठ विभा नोभां उत्यन्न थवावाजा 'अनुत्तरोपपातिक' छे. अनुत्तर विभानामा उत्पन्न थवावाणी
SR No.009333
Book TitleAnuttaropapatik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size13 MB
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