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श्री अनुत्तरोपपातिक सूत्र
श्री वीरवाणी के आधार पर ग्रथित जैनागमों के ग्यारह अङ्गों में अन्तकृत मूत्र आठवां अङ्ग सूत्र है, उस में नव्वे महापुरुपों के जीवन वृत्तान्त है, उसके बाद नवां अंग श्री अनुत्तरोपपातिक मृत्र हैं, इस सन्न के ३ वर्ग और ३३ अध्ययन है । इन ३३ अध्ययनों में जालि, भयालि आदि तेतील महापुरुषों का जीवन वृत्तान्त पढ़ने को मिलता है।
इस अलार संमार के काल चक्र में अरह के घटमालकी भाति कर्मधारी जीव भ्रमण करते रहते हैं, उन्हें किसी भी क्षण आत्मिक शान्ति नसीब नहीं होती, वे अनादि काल की परम्परा में फरते हुए जन्म, जरा, भरण की आधि व्याधि से मुक्त नहीं होते। मुक्त होने के लिए सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का अभान होनेसे वे नित्य प्रति अज्ञानजन्य दारुण कष्टों को सहते हैं। ज्ञानी पुरुष इसी कारण संसार को असार समझकर वे अपनी ऐहिक सम्पत्ति के होते हुए भी उसे तुच्छ व जीवन के लिये अहितकर समझ उस के त्यागने में ही आत्मकल्याण को देखकर संसार से मुक्त होने के लिये शीघ्र ही धन, जन बन्धन को एक क्षण में त्याग देते हैं।
इल प्रकार के ऐहिक धन-वैभव तथा विशाल कुटुम्ब परिवार को त्याग कर उच्च भावना से ज्ञान दर्शल चारित्रकी आराधना के लिये अभिग्रहयुक्त महान तपश्चर्या धारण कर अनुत्तर विमान को प्राप्त होनेवाले ३३ पुरुषों का जीवन वृत्तान्त वाला इस अनुतरोपपातिक स्त्रपर पूज्य श्री धामीलालजी म. सा. ने संस्कृट टीका लिखकर आबाल वृद्ध जैन समुदाय के लिये सूत्र पाठ जानने का सरल मार्ग कर दिया है, इसके लिये जैन समाज पूज्य श्री को सहन्नाः अभिनन्दन लेट करती है।
प्रस्तुत शास्त्र के प्रारंल में वीतराग भगवान के समवसरण रचना का विवरण झांका समाधान के माथ लिखकार भव्य पाठकवृन्द को ठीक तरह माया बामद है। आजतक बीतरागला के नाम पर आरंभ हिंसा में समाधान यसले वाले मो इल सलवसरण