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श्री अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रे
'अड्ढा जाव अपरिभूया,' इति 'अड्डा' इत्यारभ्य 'अपरिभूया' इत्येतत्पर्य तोक्तसमस्तविशेषणविशिष्टेत्यर्थः तेन 'अड्ढा दित्ता वित्थणविलवणसयणासणजाणवारणाइष्णा, बहुधणवहुजायस्वरयया, आभोगपभोगसंपत्ता, विच्छुट्टियविरलमत्तपाणा, बहुदासीदासगोमहिसगवेळयापभूया, बहुजणरस अपरिभूया इति पाठस्य सग्रहः ।
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तत्र आढया महती, धनधान्यादिसंपन्ना वा । दीप्ता=सदाचारगुणैज्ज्वला, दर्पिता धर्मगौरवगर्विता वा । विस्तीर्णविपुल वनशयनासनवाहनामै-उन विक्रय पदार्थो को कहते हैं जो चली गज, बार, हाथ अथवा किसी माप - विशेष के द्वारा माप कर दिये जाते हों, जैसेदूध, घी, तेल, वस्त्र आदि ।
परिच्छेद्य-उन विक्रय पदार्थों को करते है जो प्रत्यक्ष रूपसे कसौटी अथवा अन्य किन्हीं उपायों द्वारा परीक्षा करके दिये लिये जाते हो; जैसे- माणिक, मोती, मूंगा सोना आदि ।
'अड्ढा जाव अपरिभूया' - 'अदा' शब्द से लेकर 'अपरिभूया' पर्यन्त समस्त विशेषण पदका निम्न अर्थ है
अडढा-आल्या अपार धन धान्यसे सम्पन्न, दित्ता = दीप्ता-शील, सदाचार आदि गुणोंसे प्रकाशित, दित्ता=दर्पिता धर्म गौरव से गर्वित, अर्थात् वह भद्रा सार्थवाही अत्यधिक धनधान्यसम्पन्न, शील-सदाचाररूपी गुणोंसे प्रकाशित तथा अपने गौरव से युक्त थी। उसके विस्तृत अनेक भवन, पलंग, शय्या, सिंहासन, चौकी आदि, यान- गाडी, 'मे' - ते विडेय पहार्थाने हे हे हे, पणी, गर, वार, हाथ अथवा अध भाप विशेषद्वारा भाषी शाय, प्रेम-दूध, घी, तेल, वस्त्र, हि
'परिच्छेद्य' - ते पढार्थाने ने प्रत्यये सोटी अथवा अन्य अध उपायोद्वारा परीक्षा उरी देवाय, अथवा सेवाय, भ-भाजेड, भोती, भुगा, सोनु, माहि. 'अड्ढा जाव अपरिभूया' 'भी' शण्डथी म 'अयरिलूया' पर्यन्त समस्त વિશેષણ પદ્માના નીચે પ્રમાણે અર્થ છે
'अड्ढा'' - चार धन-धान्यथी अभ्यन्न, 'दित्ता' - दीप्ता, शीस सहायार माहि शुशोथी प्राशित, 'दित्ता' दर्चिता-धर्म- गौरवथी गर्वित अर्थात् ते लद्रा सार्थवाही ઘણાં ધન ધાન્યથી સમ્પન્ન, શીલ–સદાચાર રૂપી ગુણાથી પ્રકાશિત તથા પેાતાના ગૌરવથી युडत हुती. तेने विस्तृत अनेड लवन, योग, शय्यो, सिंहासन, पारसा माहि, मान