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________________ ३२ श्री अनुत्तरोपपातिकसूत्रे मृत्युसमये कालं कृत्वा = दारिकशरीरं परित्यज्य ऊर्ध्वम् ऊर्ध्वगतिं प्राप्नुवन चन्द्रादारभ्य सौधर्मेशानादि यावदारणाच्युतं कल्पं गच्छन नवग्रैवेयकविमानमरतरा दूर्ध्वं दूरं व्यतिक्रम्य = समुल्लङ्घ्य विजये = विजयाख्ये विमाने = अनुत्तरविमाने देवत्वेन = वैमानिकदेवत्वेन उपपन्न: - उपपाताख्यं जन्म प्राप्तवान || ० ५ ॥ मूलम् - तए णं ते थेरा भगवंतो जालि अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, काउस्सग्गं करिता पत्तीवराई गिण्हंति, गिण्हित्ता तहेव ओयरंति, जाव 'इमे से आयारभंडए भंते !' त्ति भगवं गोयमे जाव एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुब्भं अंतेवासी जालिनामं अणगारे पगइभद्दए, से णं जाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए ? कहिं उववण्णे ?, एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी तहेव जहा खंद्यस्स जाव कालमासे कालं स्कन्दक ऋषि के समान चिन्तना, पुच्छना, तथा अनशन आदि व्रत के लिये भगवान की आज्ञा प्राप्त करना आदि सब वर्णन जान लेना, और स्कन्दक ऋषि के समान ही ये जालिकुमार अनगार स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर गए । यहाँ विशेष यह समझें कि - इन्हों ने सोलह वर्ष चारित्र का पालन कर अन्त समय औदारिक शरीरको त्याग कर ऊर्ध्वगति करते हुए चन्द्रमा से लेकर सौधर्म, ईशान आदि आरण, अच्युत पर्यंत वारह ही देवलोक तथा नव ग्रैवेयक विमानों को उल्लङ्घन कर 'विजय' नामक अनुत्तर विमान में वैमानिक देवतारूपसे उत्पन्न हुए || सू० ५ ॥ સ્કન્દક ઋષિની માફક, ચિન્તના, પૃચ્છના તથા અનશન આદિ વ્રત માટે ભગવાનની આજ્ઞા પ્રાપ્ત કરવી આદિ સર્વ વર્ણન જાણવું, અને સ્કન્દક ઋષિની માફક જ એ’જાલિકુમાર અણુગાર સ્થવિરેની સાથે વિપુલાચલ પ`ત ઉપર ગયા. અહી વિશેષ આટલું જાણવું કે એએએ સાળ વર્ષે ચારિત્રપાલન કરી અન્ત સમયમાં ઔદારિક શરીરને ડી ઉર્ધ્વ ગતિ કરતાં ચન્દ્રમાથી લઇ સૌધર્માં ઇશાન આદિ ભરણુ અશ્રુત પત ખારેચ દેવલાક તથા નવ જૈવેયક વિમાનાને એલ ઘી વિજય’ નામે અનુત્તર વિમાનમાં વૈમાનિક દેવ રૂપે ઉત્પન્ન થયા. (સ્૦૫)
SR No.009333
Book TitleAnuttaropapatik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size13 MB
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