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आठवां वर्ग
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अन्तिम आठवें वर्ग में श्री श्रेणिक महाराजकी दस रानियोंका वर्णन है । ये दसो रानियां भगवान महावीरका उपदेश सुन दीक्षित हुई और दीक्षा लेने के बाद काली आर्याजीने रत्नावलि तप, सुकाली अर्याजीने कनकावली तप, महाकाली आर्याजीने लघुसिंह निष्क्रीडित तप, कृष्णा आर्याजीने महासिंह निष्क्रीडित तप, सुकृष्णा आर्याजीने सातवीं आठवीं नवमीं दशवीं भिक्षु पडिमा तप, महाकृष्णा आर्याजीने लघु सर्वतोभद्र तप, वीरकृष्णा आर्याजीने महासर्वतोभद्र तप, रामकृष्णा आर्याजीने भद्रोत्तर तप, पितृसेन कृष्णा आर्याजीने मुक्तावली तप, और महासेनकृष्णा आर्याजीने आयम्बिल वर्धमान तप किया । सुकुमार शरीर होते हुए भी इतनी महान तपश्चर्या विना आत्मकल्याण नहीं, ऐसा समझकर उन महारानियोंने प्रत्येक भव्य जीवोंको तपद्वारा कर्म क्षय करनेका अपनी जीवनचर्यासे बोध कराया है ।
इस अन्तगड सूत्रमें मोक्ष प्राप्त प्रत्येक नहान् आत्माका तपसंयम युक्त जीवनका वर्णन है । मोक्ष प्राप्त कराने में तप संयम प्रत्येक भव्य प्राणिके लिये महान साधन है - ऐसा हमें अन्तगड़ सूत्रके पठन व श्रवणसे भलाभांति मालूम होगा। इन महापुरुषों का जीवन वर्णनरूप यह अन्तगडसूत्र पर्युषणके आठ दिनों में पढनेका विधान है, तदनुसार पर्युषणोंमें भव्य जीव पूर्ण भक्तियुक्त मनसे इसका श्रवण करते हैं । इस कारण जैनाचार्य पूज्य श्री घासीलालजी म. सा. ने सर्वको सुबोध हो व सरलतासे सभी अबाल वृद्ध पठन पाठन कर सकें, इस ध्येयसे इस अन्तगड सूत्रकी सरल संस्कृत टीका बनाई । वह हिन्दी गुजराती भाषा टीकासे युक्त है । "वह प्रत्येकके लिये उपयोगी है । आशा है- भव्यवृन्द इस सूत्र को पढकर उत्तरोत्तर ज्ञानदर्शन चारित्रकी वृद्धिको प्राप्त होगें ।
निवेदकसमीर मुनि