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________________ मगारधर्मामृतपणी टीका अ० १६ द्रौपदीच रितनिरूपणम् ५८३ मूलम् - तणं सा दोवई अज्जा सुव्वयाण अजियाण अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाइ अहिज्जइ अहिजित्ता वणि वासाणि० मासियाए सलेहणाए० आलोइयपडिक्कता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववन्ना, तत्थ णं अत्येगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता तत्थ णं दुवयस्स देवस्स दस सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता, से णं भते । दुवए देवे ताओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झइ जाव काहिह । एवं खलु जंबू । सम णं जान सपत्तेणं सोलमस्त णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्तिवेमि ॥ सू० ३४ ॥ सोलसमं नायज्झयणं समत्त ॥ १६ ॥ टीका- 'तरण मा ' इत्यादि । ततस्तदन तर खलु मा द्रोपदी आर्या साधी सुव्रतानामार्थिकाणामन्ति के सामायिकादिकानि एकादशाद्गानि अधीते, अधीत्य बहूनि वर्षाणि श्रामण्यपर्याय पालयित्वा मासिक्या सलेखनया आलोचित प्रतिकान्ता कालमासे काल कृत्वा 'चलो पचमे ब्रह्मलोके देवत्वेन ' उपवन्ना 1 4 तणं सा दोवई ' इत्यादि । टीकार्य - (तरण) इसके बाद (सा दोवई अज्जा) उस द्रौपदी आर्याने ( सुव्वयाण अज्जियाण अति सामान्यमाइयाइ एकारसअगाह अहि ज्जइ ) सुत्रता आर्या के पास सामायिक आदि ११ अगो का अ ययन किया (अहिज्जिसा णि वासाणि० मानियाए सटेरणाए० आलोइय पटना कालमा काल किच्चा बभलोए उवचन्ना) अभ्ययन करके अनेक वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर एक मास की सलेखना तरण सा दोवई इत्यादि -- टीजर्थ - (तएण ) त्या२पछी (सा दोवई अज्जा) ते द्रौपदी आर्या (सुब्ब याण अज्जियाण अतिए सामाइयमाइयाइ एकारसअ गाइ अहिज्नर ) सुत्रता આર્યોની પાસે મામાયિક વગેરે ૧૧ અગાનુ અધ્યયન કર્યું (अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि० मासियाए सलेहणाए• आलोईय पडिक्कता कालमासे कालकिच्चा बभलोए उवबन्ना ) અધ્યયન કરીને ઘણા વર્ષોં સુધી શ્રામઃ। પર્યાયનુ પાલન કર્યું. ત્યાર
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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