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________________ अमगारधर्मामृतवर्षिणी ठोका अ० १६ द्रौपदीधरित निरूपणम् ५४३ यावत् प्रतिगत = पद्मनाभस्य पुत्र राज्येऽभिषिच्य कपिलवासुदेवो यस्यादिशः मादुर्भुवस्ता दिश प्रतिगत इति भाव ॥ सु०३० ॥ मूलम् - तए णं से कण्हे वासुदेवे लवणसमुद्द मज्झं मज्झेणं वीsaas, त पच पडवे एवं वयासी - गच्छहण तुभे देवानुप्पिया | गंगामहानई उत्तरह जाव ताव अह सुट्टियं लवणाहिवई पासामि, तए णं त पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं बुत्ता समाणा जेणेव गंगामहानई तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता एगट्टियाए णावाए मग्गणगवेसणं करेति करिता एगट्टियाए नावाए गंगामहानइ उत्तरति उत्तरित्ता अण्णमण्णं एवं वयंति - पहू णं देवाप्पिया । कण्हे वासुदेवे गंगामहाणई वाहाहि उत्तरित्त उदाहु णो पभू उत्तरित्तएत्ति कहु एगट्टियाओ नावाओ महया रायाभिसेएण अभिसिंचइ जाव पडिगए) अरेओ मरणवाञ्छक पद्मनाभ ' मेरे जैसे पुरुष कृष्ण वासुदेव का विप्रिय-अनिष्ट- करते हुए - तुमने मेरा कुछभी ख्याल नहीं किया ? इस प्रकार कह कर वे उस पर बहुत अधिक कुपित हो गये । यावत् उस पद्मनाभ राजा को उन्हों ने अपने देश से बाहिर भी निकालदिया । तथा उसका जो पुत्र सुनाभ था । उस को बडे भारी उत्सव के साथ राज्य में अभिषिक्त किया । इस प्रकार पद्मनाभ के पुत्र को राज्य में अभिषिक्त करके वे कपिल वासुदेव जिस दिशा से आये थे उस दिशाकी ओर वापिस चले गये ॥ ३० ॥ सय आणवेइ, पउमणाहस्स पुत्त अमरकका रायहाणीए महया महया रायाभिसेएण अभिसिंच, जाव पडिगए) અરે, એ મૃત્યુને ઇચ્છનાર પદ્મનાભ ! મારા જેવા પુરુષ કૃષ્ણવાસુદેવનુ પુરૂ કરતા તે મારી પણુ દરકાર કરી નહિ ? આ પ્રમાણે કહીને તે ખૂબજ ક્રોધિત થઈ ગયા યાવત્ તે પદ્મનાભ રાજાને પેાતાના દેશથી બહાર પણ નસાડી મૂકયે। ત્યારપછી તેના પુત્ર સુનાલને ભારે ઉત્સવની સાથે રાજ્યાભિષેક કર્યાં આ રીતે પદ્મનાભના પુત્રને રાજ્યાસને અભિષિક્ત કરીને કપિલ વાસુદેવ જે દિશા તરફથી આવ્યા હતા તે દિશા તરફ઼ે પાછા જતા રહ્યા ॥सूत्र ३० ॥
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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