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________________ _ rent अज्जाओ' इति, तस-तस्मात् कारणात् यूयं खस आर्याः ! 'सिविषयामो' शिक्षिता शिक्षा माता, 'पहुणायाभो ' परमाणा-अनेकशास्त्रज्ञाननिपुणा 'यहूपढियाओ' बहुपठिता नानाविधविधाकुशलाः स्थः पुनः 'यहणि गामागर जार अहिंडह ' यानि नामाकर 'यायत् भादिण्डय-बापु ग्रामारनगरादिपु परि भ्रमण कुरुथ । तथा च 'यहण राईसर जाप गिहाइ अशुपधिगइ रहना राजेपर यावद् गृहाणि अनुमयिशय-हे आर्याः । यूय बाना राजेश्वर तलपरष्ठि सेना पत्यादीना गृहे मवेश फुरुथ, 'त'तत्-तस्मात् कारणात् 'अस्थि अइ मे अज्जाभो। अस्ति भाइ युप्मायमार्या ! 'भाइ' इति वाक्यालड़ारे देशी शतः। हे आयो। अस्ति 'केइ कहि चि' कोऽपि कुत्रचित-युप्माफ ज्ञानविपये 'चुभनोए वा' चूर्णयोगो वा-चूर्णाना द्रव्यचूर्णानां योगः, स्तम्भनादिकर्मकारी, 'मतजोए का" मन्त्रयोगो वा-मन्त्राणां योगो व्यापारी का वशीकरणादि मन्त्रयोग 'कम्मणजोए और देखने की उनकी पात ही क्या कहूँ इस लिये हे आर्याओ। भाप सब तो शिक्षित हैं, पहज्ञाता है-अनेक शास्त्रों के ज्ञानसे निपुण हैंबहुपठित हैं-नाना प्रकार की विद्याओं में कुशल हैं-अनेक ग्राम, आकर आदि स्थानों में विहार करती रहती है, अनेक राजेश्वर आदिको के घरो में आती जाती रहती हैं (त अस्थिआइ भे अजाओ) तो हे आर्याओ ! (देह कहिं चि चुन्नज्जोएवा) की कोई चूर्ण योग-द्रव्य चूर्णा का स्तम्भनादि कर्मकारी योग (मतजोए वो कम्मणजोए वा हिय उड्डानणे वा, काउड्डावणे वा आभिओगिए वा वसीकरणे वा, कोउयकम्मे वा, भूइकम्मे चा मूले, कदे छल्ली, घल्ली, सिलिया, वा, गुलिया वा, ओसहे वा, भेसज्जे वा, उवलद्धपुत्वे वा जेणाह तेतलिपुत्त स्स पुणरवि इट्ठा ५ भवेज्जामि) मत्र योग-वशीकरण आदि मत्रों का તો વાત જ કયા રહી? એથી હું આ તમે સી શિક્ષિતા છે, બહાતા છે એટલે કે ઘણા શાસ્ત્રોના જ્ઞાનથી નિપુણ છે, બહુપ ડિતા છે-અનેક જાતની વિદ્યાઓમાં કુશળ છે, ઘણું ગામ, આકર રથમાં વિહાર કરતા રહે છે, भने घय राजेश्वर पगेन भसामा मा ४२॥ २२॥ छ। ( त अस्थिआइ भे अजाओ) तो मायाय।। (केइ कहि चिचुन्नज्जोएवा) या ગમે તે ચૂર્ણ ચગ-દ્રવ્ય ચુણેને સ્ત ભન વગેરેને રોગ, (मतजोएवा कम्मणजीए वा हिय उड्डावणे वा, काउडावणे वा अभि भोगिए वा वसीकरणे वा, कोउयकम्मे वा, भूइकम्मे वा मूले कदे छल्ली पल्ली सिलिया, या गुलिया वा, मोसहे वा, मेमज्जे या उबलद्धपुग्वे वा जेणाह तेतलि पुनस्स पुणरवि इवा भवेन्जामि)
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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