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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका थ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम्
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करिता पोसहसाल अणुपविसइ अणुपविसित्ता सुट्ठिय देवं मणसि करेमाणे २ चिटूइ, तएण कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणसि सुट्टिओ आगओ, भणदेवाणुपिया | ज मए कायव्व, तएण से कण्हे वासुदेवे सुट्ठिय एवं वयासी - एव खलु देवाणुपिया | दोवई देवी जाव पउमनाभस्त भवणसि साहरिया तण्णं तुमं देवाणुप्पिया । मम पंचहि पंडवेहि सद्धि अपछहस्स छण्ह रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरेहि, जण्ण अह अमरकंकारायहाणा दोवईए कूवं गच्छामि, तएण से सुट्टिए देवे कण्ह वासुदेव एव वयासीकिण्ह देवाणुपिया । जहा चेव पउमणाभस्स रन्नो पुव्वसंगइएणं देवेण दोवई जाव संहरिया तहा चैव दोवईं देवि धायइडाओ दीवाओ भारहाओ जाव हत्थिणापुर साह - रामि, उदाहु पउमणाभ राय सपुरवलवाहण लवणसमुद्दे पक्खिवामि, तएण कण्हे वासुदेवे सुट्ठिय देव एव वयासी -माण तुम देवाणुपिया | जाव साहराहि तुम णं देवाशुप्पिया । लवणसमुद्दे अप्पछटुस्स छण्ह रहाण मग्गं वियराहि, सयमेव ण अह दोवईए कूव गच्छामि, तएण से सुट्ठिए देव कण्ह वासुदेव एव व्यासी- एव होउ, पचहिं पडवेहिं अप्पछट्टस्स छण्ह रहाण लवणसमुद्दे मग्गं वियर, तएण से कहे वासुदेवे चाउरगिणसिण पडिविमज्जेइ - पडिवि - सज्जित्ता पचहि पंडवेहिसद्धि अप्पछडे छहि रहेहि लवणसमुद्द