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________________ ४६२ पाताभ आवाहेइ आवाहित्ता जामेव दिसि पाउभूए तामेव दिसिं पडिगए, तएण से कण्हे वासुदेवे दूयं सदावेद सदायित्ता एव वयासी-गच्छहण तुम देवाणुप्पिया! हस्थिणाउर पंडुस्स रन्नो एयमट्ट निवेदेहि एवं खल्लु देवाणुप्पिया । धायइसंडे दीवे पुरच्छिमद्धे अवरककाए रायहाणीए पउमणामभवणसि दोवइए देवीए पउत्ती उवलडा, त गच्छंतु पंच पंडवा चाउरगिणीए लेणाए सर्टि सपरिवुडा पुरस्थिमवेयालाए मम पडिवालेमाणा चिट्ठतु, तएण से दूर जाव भणइ, पडिवालेमाणा चिहह ते वि जाव चिहति, तएणं से कण्हे वासुदेवे कोडुवियपुरिसे सहावेइ सदावित्ता एवं बयासीगच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया । सन्नाहियं भेरिताडेह, ते वि -तालति, तएण तेमि सण्णाहियाए भेरीए सदं सोचा समुद्दविजयपामोक्खा दसदसारा जाव छप्पण्णं वलवयसा हस्सीओ सन्नद्धवद्ध जाव गहियाउहपहरणा अप्पेगइया हयगया गयगया जाव वग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव सभा सु हम्मा जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छड उवागच्छित्ता करयल जाव बद्धाति, तएण कण्हे वासुदेवे हस्थिखंधवरगए सकोरटमल्लदामेण छत्तेण० सेयवर० हयगय० मया भडचडगरपहकरेण बारवईए णयरीए मज्झं मझेण जिग्गच्छइ, जेणेव पुरस्थिमवेयाली तेणेव उवागच्छइ उवागञ्छित्ता पचहि पडवेहि सद्धि एगयओमिलित्ता र करे
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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