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साधका
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मनोमा - मतसः स्थानभूता कि पहना उम्बरपनि 'लुम्बरपुष्पकेनापि 'इतिरत् श्रारिपयत्येन सा दमा, विमा ! पुन-दर्शनविषयतया, त तस्माद् नो खेल अहमिच्छामि सुकुमारियाया दारिकायाः क्षणमपि विप्रयोग = वियोगम्, तत्तस्माद यदि सद हे देवानुप्रिय ! मागावासो मम 'घरजामा उप गृदामाकगृहवासीजामाता मपति 'कोण' वर्दि ख भद्द सागराय दारकाय कुमारि ददामि । यतः खन्द से जिनदत्तः सागराः सागरदन anantara ar at स्वयं गृपागच्छति, उपागस्य समरदार= स्वपुत्र शब्दयति, शन्दयित्वा परमशदीद पर खल हे पुत्र । सगारदत्तः सार्व मम मति, सम्बन्धसामान्ये पष्ठी एवं वध्यमाणप्रकारेण अवादीवएव खलु हे देवानुमिय ! सुकुमारिका दारिका ममेका एक जाता इष्टा ' त चेद' है। यह मेरे लिये ईष्ट यावत् मनोम है-कान्त है, प्रिय है और मनोश है । अनुकूल होने से इष्ट, ईप्सित होने से कान्त प्रीतिपात्र होने से fararathed वाली होने से मनोज्ञ एव मन का स्थान भूत होने से मनोज्ञ है । ज्यादा क्या कहूँ यह तो हमें बहुवर पुष्प के समान दर्शन दुर्लभ थी -सुनने की तो बात ही क्या। अत' मैं इसे देना नहीं चाहता हूँ । कारण इस सुकुमारिका दारिका के बिना मैं एक क्षण भी नही रह सकता हूँ इसलिए हे देवानुप्रिय | सागर यदि घरजमाई पन कर रहना चाहें तो मैं उन्हें यह अपनी सुकुमारिका पुत्री दे सकता हूँ । (तरण से जिदत्ते सवाह सागरदन्तेण सत्यवाहेण एवं युत्ते समाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छद्द उवागच्छित्ता सागरदारग सहावे, सदावित्ता एव वयासी - एव ग्लु पुत्ता | सागरदन्ते सत्थवाहे मम एव
આ મને ઋષ્ટ યાત્ મનેામ છે-એટલે छत छे, प्रिय छे, अने भनाम छे અનુકૂળ હાવા બદલ ઇષ્ટ, ઇપ્સિત હૈાવાથી થાત, પ્રીતિપાત્ર હોવા બદલ પ્રિય અને મનને ગમે એવી હોવાથી મનેજ્ઞ તથા મનના આશ્રય હાવાથી મનામ છે વધારે શુ કહુ ! આ તે અમને દુખ પુષ્પની જેમ દર્શીન-દુર્લભ હતી સાભળવાની તો વાત જ શી કરવી! એથી આને હુ આપવા ઈચ્છતા નથી કારણ કે એના વગરે હુ ક્ષજીવાર પણ રહી શકતા નથી એટલા માટે હે દેવા સુપ્રિય ! સાગર જો ઘર જમાઈ થઈને મારી પાસે રહેવા ઈચ્છતા હાય તે હુ આ મારી સુકુમારીકા પુત્રી તેમને આપી શકે તેમ છુ
(तरण से जिणदत्ते सत्यवाहे सागरदते णं सत्पवाहेण एव कुत्ते समाणे जेणेवं सर गिहे तेणेव उपागच्छछ, उवागच्छित्ता सागरदारग सदावेह, सद्दावित्ता एव वयामी - एव खलु पुत्ता 1 सागरदत्ते सत्थवाहे मम
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