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________________ मनगारधामृतषिणो टीका अ० १६ सुकुमारिकाचरितवर्णनम् पात्र' कन्या योग्योऽय मत्पुत्रः सागर ' इति, 'सलाहणिज्ज वा ' श्लाघनीयंमशसनीयं वा 'सरिसो वा सजोगो' सहगो पा संयोग:-अय कन्यावरयो वैवा. दिकः सम्बन्धः कुलेन रूपेण गुणेन वा तुल्य इनि, 'तो' तहि 'दिज्जउ' ददातु भवान् खलु सुकुमारिका दारिकां सागराय-मत्पुनायेतिभावः । ततः खलु हे देवानुप्रिय ! बहि-किंदा-किं दद्या, शुल्क-समानार्थ द्रव्य सुकुमारिकाया दारिकायाः १ ततः यलु स सागरदत्तः सार्यवाहस्त जिनदत्तमेवमवादी-एव खलु हे देवानुभिय ! मुकुमारिका दारिका ममैका एकजाता-एफैलोत्पन्ना, तया-इष्टाअनुकूला, यावद-कान्ता-ईप्सिता, प्रिया-धीविपात्रा, मनोज्ञा-मनोगता तथाकन्या के योग्य है यह संयन्ध प्रशसनीय है, कन्या और चर का यह वैवाहिक सवन्ध कुल स्प और गुणों के अनुरूप है तो आप अपनी पुन्नी सुकुमारिका को मेरे पुत्र नागर के लिये प्रदान कर दीजिये-(तएण देवाणुप्पिया । किं दलयामो सुक्क सुमालियोए १) हे देवानुप्रिय ! साय में यह भी कत्दीजिये कि सुकुमारिका दारिका के समानार्थ हम क्या द्रव्य दे (तएण से सागरदत्ते तं जिणदत्त एव वयासीएव खलु देवाणुप्पिया! सूमालिया दारिया मम एगा, एगजाया ईट्ठा जाव किमगपूण पासणयाए त नो खलु अह इच्छामि, समालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं त जणं देवाणुप्पिया ! सागरदारए मम घरजामाउए भवई, तो ण अह सागरस्त सूमालिय दलयामि) साग रदत्तए ने जिनदत्त से तब इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय ! यह सुकुरमारिका पुत्री मेरे या एक ही लड़की है और यह एक ही उत्पन्न हुई છે, આ સબ ધ સારે છે, કન્યા તેમજ વરને આ લગ્ન સબધ કુળ રૂપ અને ગુણેને અનુરૂપ છે તે તમે તમારી પુત્રી સુકુમારિકાને મારા પુત્ર સાગરને भाटे माप (तएण देवाणुप्पिया! किं दल्यामो सुक सुमालियाए १) - નુપ્રિય ! સાથે સાથે એ પણ અમને જણાવે કે સુકુમારી દારિકાના સમા નાર્થે અમે શુ દ્રવ્ય રૂપમાં આપીએ ? । (तएण से सागरदचे त जिणवत्त एव वयासी एव खलु देवाणुप्पिया ! सूमा पलया दारिया मम एगा एग जाया इट्टा जाब किमगपुण पासणयाए त नो खल अह इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि पिप्पओग त जइण देवाणुप्पिया ! सागरदारए मम धरजामाउए भरद, तो " अह सागरस्स दारगस्स सुमालिय दलयामि ) त्यारे मागत हत्तन मा प्रभार पानुप्रिय ! मा - કુમારિકા દારિકા માટે એકની એક પુત્રી છે અને આ એક જ જન્મી છે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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