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| আমাথায় धारयति, निर्विया तेतनिपुत्रस्य अदरमामन्त नादिरे नातिनिटे स्थिता एवमगादीत्-डभो तेतलिपुत्र ! 'हमो' इत्यामन्त्रणे, हे वेवलिपुत्र ! 'पुरओ' पुरता अग्रतः ''पनाए ' प्रपात:-गत., अतो निर्गमनमसम्मति, पृष्ठतः इस्ति भयम् , अतो प्रत्यावर्तन चासमति, 'दुहमो ' उभयता-उभयत =उभयोः पार्श्वयोः ' अचासुफासे' अस्पर्श अन्धकार, 'मजो'मये या यमास्महे तत्र ' सराणि' शरा माणा, 'रिसति' वर्षन्ति-निपतन्ति । 'गामे पलिते' ग्रामे मदीप्ते प्रज्वलिते सति रणे' आण्य-धन 'झिया' ध्यायति गन्नु चिन्तयति, अरण्ये प्रदीप्ते ग्राम ध्यायनि-गन्नु चिन्तयति, 'आउमो तेतलिपुता' हे आयुष्मन् तेतलिपुत्र । ' उभोरठिते 'उभयत प्रदीप्ते-उमयस्मिन् प्रज्वलिते वय ' कओ वयामो' कुतो नाम' कगन्छाम । ततः यलु स तेलिपुत्रः पोटिला तेतलिपुत्तस्स अदूरसामते टीच्चा एच बयासी) धारण कर के वह तेतलिपुत्र के समीप गयी। वहाँ जाकर उसने उसमे इस प्रकार कहा-(ह भो तेतलिपुत्ता ! पुरओ पवार पिट्ठो हत्यिभय ) अरे ओ तेतलिपुत्र ! आगे प्रपात ग्वड्डा है और पीछे हाथी का भय है। (दुरओ अचक्खुफासे, मज्झे सराणि परिसति) दोनों ओर अन्धेरा है और जहा हमलोग ठहरे हुए हैं बहा वाणों की वृष्टि हो रही है । (गामे पलिते रण्णो झियोइ, रनो पलित्ते गामे झियाइ) ग्राम में आगलगने पर मनुष्य जगल में चले जाने को सोचता है-और जगल में आग लगने पर ग्राम मे चले आने के लिये विचारता है। (आउसो तेतलि पुत्ता ! उभओ पलिते कओ वयामो) परन्तु जर दोनो में आग लग जावे तो हे आयुष्मन तेतलिपुत्र ! कहो! हम कहा जावे (तएण से त पाहिलानु ३५ पार ४यु (विउव्यित्ता तेतलिपुत्तस्स अदूरसामते ठीच्या एव वयासी ) धा२९। उसने ते तेतलिपुत्रनी पासे 5 त्या न तो तेने मा प्रमाणे उखु (ह भो तेतलिपुत्ता ! पुरओ पवा पिट्टओ हथिभय ) मरे, એ! તેતલિપુત્ર! તમારી સામે પ્રપાત-ધંધ છે અને તમારી પાછળ હાથીને - सय छ (दुहओ अचासुफासे, मज्झे सराणि परिसति ) भने त२५ अघा३
छ भने क्या अभे ना छीमे त्या ती। वर्षी रह्या छ (गामे पलिते रणो झियाइ रनो पलिते गामे जियाइ) गाममा माt anता माथुम सभा નાસી જવાને વિચાર કરે છે અને જગમાં આગ લાગતા ગામમાં આવતા रवाना किया२ ४२ छ ( आउसो तेतलिपुत्ता उभओ पलिते को क्यामो) પણ જ્યારે બંને તરફ આગ સળગી ઉઠે ત્યારે તે આયુષ્યન્ત તેતલિપુત્ર! 'नासो, अमे या मे ?