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আসামগ্র भन्युत्तिष्ठति । 'त' तत्-तस्मात् कारणात् , या खटु मम आरमान जीवि ताद् व्यपरोपयितुम् , इति कत्या, पर समेक्षते, संप्रेक्ष्य तार पुट विषम् ' आसगसि' आस्ये-मुखे प्रक्षिपति, पि नो मनाम्यति-पित्वेन नो परिणमति । ततः खलु स तेवलिपुगो' नीलुप्पट जार असि' नीलोत्पल यापदमिनीलोत्पल गालगुलिकसममभ-नीलोत्पल-नीलकमलम् गार-माहिप शृङ्गम् , 'गुरिक' नीलरङ्गविशेष, तै. समा प्रभातेतलि कान्तिर्यस्य स त ताश यादसि तीक्ष्ण खड्ग 'खो' स्कन्धे-अण्ठमछे 'ओहरइ ' अहरतिनिपातयति । तमाऽपि च कर राजा के पास गया-तप भी इन सपलोगों ने पूर्ववत् मेरा आदर आदि सप कुछ किया-परन्तु अफरमान राजा के मष्ट होने पर जब में वहा से लौटकर वापिम अपने स्थान पर आने लगा तो किमी ने भी 'मेरा आदर आदि कुछ भी सत्कार नहीं कियो । यहा तक कि जो मेरी बाह्य और आभ्यन्तर परिपद है-भीतर वाहरके नौकर चाकर एपमाता पिता आदि जन है-उसने भी आज इस समय आने पर मुझे कुछ नहीं समझा-अतः मुझे अब ऐसी स्थिति से मरना ही उत्तम है । इस प्रकार का उसने अपने मन मे विचार किया-(सपेहिता तालउड विस आसगसि परिखवइ, सेय विसे णो सकमह, तरण से तेतलिपुत्ते नील प्पल जाव असिं खसि ओहरद, तत्य विय से धारा ओपल्ला, तरण से तेतलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उ०) विचार करके उसने ताल पुटविष को अपने मुख में डाला-परन्तु उसने अपना कुछ भी प्रभाव રાજાની પાસે ગમે ત્યારે પણ એ બધાએ પહેલાની જેમજ મારે આદર વગેરે બધુ કર્યું હતું પણ ચિંતા રાજાને નારાજ થઈ જવા બદલ જ્યારે હું ત્યાથી પાછા ફરીને પિતાને ઘેર આવવા લાગે ત્યારે કોઈએ પણ મારે આદર કે સરકાર કર્યો નહિ મારી બાહ્ય અને આભ્ય તર પરિષદ એટલે કે બહારના નેકર-ચાકરો અને માતા પિતા વગેરે છે તેઓએ પણ આજે અત્યારે મારા આવવા બદલ કોઈ પણ કિંમત કરી નહિ એથી એની પરિસ્થિતિમાં મારૂ મરણ જ ઉત્તમ ઉપાય છે
(सपेहिता तालउड विस आसगसि पविखवइ, सेय विसे णो सकमइ, तरण से तेतलिपुत्ते नीलुप्पल जाव अमि खसि ओनरइ, तत्यवि य से धारा ओपल्ला, तपण से तेतलिपुत्ते जेणेच असोगणिया तेणेउ०)
, આ જાતને વિચાર કરીને તેણે તાલપુટ વિષ (ઝેર) ને પિતાના