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ताया ताइव कालका श्यामवर्णः । नयणविसरोसपुग्णे' नयनविपरोपपूर्णः - नयनयो विप रोपश्च, ताभ्या पूर्ण: 'अजणपुज नियरप्पगासे' अञ्जनपुस्खनिकरमश:बजलाना निकर- राशिः तमाश' यान्तिर्यस्य स तथोक्त'-अत्यन्त श्याम इत्यर्थः । ' रत्तच्छे ' रक्ताक्षः = रक्तनेत्र । ' जमलजुयलचचलचलतजीहे' यमल्युगलचञ्चलचलज्जिद-यमले सहात्तिनौ युगटे-उभे चश्चष्टे-चपले चलन्त्यों पुन'पुनर्वहिनिस्सरन्त्यौ जिहे यस्य स तथा । 'धरणीयलवेणिभूए' घरणितलवेणी भूत अत्तिदै यश्यामत्वादिसादृश्यात् पृथिव्या केशपाशसहशः ' उक्डफूड कुडिलजटिलप परखड वियडफडाडोवारणदच्छे । उस्कटस्फुटकुटिलजटिल फर्कशविकटस्फटाटोपकरणदक्षः - उत्कट = बलवताऽ पि धसयितुमशक्यः, स्फुटः व्यक्तः कुटिलावक्रा, जटिल:-सिंहवत् शटायुक्तः, करंश कठोरः, विकटश्च% भयचरो यः फटाटोप'फणाडगरः तस्य करणे विस्तारणे दक्ष निपुणः । लोहा गरधम्ममाण घमघमत घोसे ' लोहाफरमायमान धमधमायमान घोष - लोहा यह थड़ा गुस्से पाज है । बज्जल पुज की राशि के समान यह बिलकुल काला है । इम के दोनों नेत्र सदा लाल रहते हैं । इस की साथ २ रही हुई दोनों चचल जिह्वाण वार २ थाहर निकलनी रहती हैं । अत्यन्त दीर्घ एव श्याम होने के कारण यह देखने में ऐसा लगता है कि जैसे मानो पृथिवी रूप स्त्री की वेणी चोटी ही हो । बलवान् पुरुष भी जिसे नष्ट नहीं कर सकता है जो व्यक्त है, कुटिल-वक्र-है,सिंह के समान शटा सपन्न है, कर्कश है, और विकट-भयकर है-ऐसी अपनी फणा के फैलाने में यह बड़ा भारी दक्ष है । भट्टी में तपते हुए लोहे का जैसे धम धम शब्द होता है उसी प्रकार इस से निकला हुआ शब्द भी धम धम ऐसी आवाज करता हुआ ही निकलता है । इम का अत्यन्त जो એર રહે છે તે બહુ જ ક્રોધી છે કાજળના સમૂહની જેમ સાવ કાળો છે તેના બને નેત્રો હમેશા રાતા રહે છે તેની સાથે રહેનારી બને છ ચ ચળ તેમજ વાર વાર બહાર નીકળતી રહે છે બહુ લાબ અને કાળે હેવાથી તે જોવામાં એવો લાગે છે કે જાણે પૃથ્વી રૂપી સ્ત્રીની વેણી (ચેટી ) જ ન હેય બળવાન પુરુષ પણ જેને નષ્ટ કરી શકતા નથી, જે વ્યક્તિ છે, કુટિલ 43-, सिंडनी म श स पन (शपाणी ) छ, ५४ छ, भने ४िભય કર-છે એવી પિતાની ફણાને ફેલાવવામાં તે ભારે દક્ષ છે ભઠ્ઠીમાં તપવવામાં આવેલા લેખ ને જેમ ધમ ધમ ” વનિ થાય છે તે પ્રમાણે જ तभाथी नतो पनि प प ' मा ४२ • तना