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अनगारधर्मामुयपिणी टीका अ० ८ जितशत्रुनृपवर्णनम्
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किमन्यदुत्तर दास्यामी ' त्येवमुत्तरविषयक वाञ्छायुक्ता । ' विगिच्छिया ' विचिकित्सिता = ' अस्मिन्नुत्तरे दत्ते सति किं मल्ल्या अन श्रद्धोत्पत्यस्पते किंवा नोत्पत्स्यते ' इत्येव विचिकित्मा = सशयः, सजाता यस्या सा विचिकित्सिता, तथा - ' भेयसमावण्णा' भेदसमापन्ना भन भेदो मतेर्भद्र:- मयाऽधुना किं कर्तव्यमिति निर्णयाभवाद् व्याकुलतारूपस्त समापन्ना समाप्ता, जाताचाप्यभवत् शङ्कितेत्यादि विशेषणचतुष्टयेन चोक्षा परिनाजिका मल्ल्या समुचित दृष्टान्तेन
कृत प्रश्न समान व्याकुलीजावा, इति भावः मल्ल्या ' णो सचाएइ ' नो से धोने पर किसी भी प्रकार की शुद्धि नही होती है । (तएण सा चोखा परिवाइयो मल्लीए विदेह रायवर कन्नाए एव वृत्ता समाणा सकिया कखिया विगिच्छिया भेय समावण्णा जाया यावि होत्या ) इस प्रकार विदेह राज की वर कन्या मल्ली कुमारी के द्वारा समझाई गई वह चोक्षा परिव्राजिका शका से युक्त वन गई, कांक्षा से युक्त बन गई, विचिकित्सा ( फलके प्रति सदेह और भेद ( अपने मतव्य का विच्छेद) से समापन हो गई । मनसे सोचकर यदि मे मल्टी कुमारीको उत्तर दूगी तो न मालूम वह उत्तर मच्चा होगा कि नही होगा इस प्रकारका उसके हृदय में द्वैधी भाव आनेसे वह चोक्षाशक्ति बन गई ।
यदि मेरा दिया हुआ उत्तर ठीक नही होगा-तो उस का उत्तर में क्या दूंगी - इस प्रकार वह उत्तर विषयक वाञ्छा से युक्त बन गई । मल्ली कुमारी को उत्तर देने पर भी कौन जाने उस में उस की श्रद्धा होगी या नही होगी इस तरह वह विचिकित्सा - से युक्त बन गई ।
(तएण सा चोक्खा परिवाइया मल्लीए विदेहरायवर कन्नाए एव वृत्ता सकिया कखिया विsगिच्छिया भेयममावण्णा जाया यावि होत्या )
આ પ્રમાણે વિદ્વૈહરાજવર કન્યા મલ્લીકુમારી વડે સમજાવવામા આવેલી ચેાક્ષા પરિત્રાજિકા રાકાથી યુક્ત થઈ ગઈ, કાક્ષાથી યુક્ત થઈ ગઈ, વિચિકિત્સા ( ફળ પ્રાપ્તિ વિશેસ દેહયુક્ત) અને ભેદ ( પેાતાની માન્યતાના નાશ ) સમાપન્ન થઈ ગઇ મલીકુમારીને જવાખમા હું કોઈ પણ વસ્તુ રજૂ કરીશ તે તે સાચી હશે કે કેમ ? આ જાતની મુઝવણથી ચાલાનુ મન શક્તિ થઈ ગયુ
“જો મારે। જવાબ ખરેબર નહિ હાય તેા ખીલે શા જવાખ હૂ આપીશ ? આ પ્રમાણે તે જવાખના વિશે વાŌાયુક્ત થઈ ગઈ “ મત્લીકુમારીને જવાબ આપ્યા છતા પણ તેને મારા જવાબ ઉપર વિશ્વાસ એમશે કે કેમ ?,
આ રીતે તે વિચિકિત્સા યુક્ત થઈ ગઈ “ આ પરિસ્થિતિમા મારે શું કરવુ