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शांताधर्मकथा शकोति कचिदपि ' पामोक्ख' प्रमोक्षम्ममुन्यते प्रश्नपचनादने नेति-मोक्षः प्रश्नस्य परिहारम्, उत्तरमित्यर्थः ' आहक्सित्तए ' आर यातु-क्यापितम्, यदा चोक्खा परिबाजि मल्ल्याः प्रश्नस्योत्तर तुमसमर्था जाता, तदा मा 'दुसि णीया' तूष्णीका-मौनावलम्भिनी भूला 'सचिलुइ' सतिष्ठते सस्थिता । ततस्तदन्तर खलु तां चोक्षा मल्ल्यापहव्यो दासचेटिका दासपुत्र्यः ' होलेति' हिलन्ति-अवमानयन्ति, निन्दति-जात्यायुद्धाटनेन कुत्सन्ति, खिसन्ति-दोषकी तनेनोपइसन्ति, गर्दन्ते सर्वसमक्ष निद्रा कुन्ति, अप्येकिका एकाः काश्रितक्रोधयन्ति तस्याः कोपमुद्दापयन्ति, जप्येकिकाः-एकाः काश्वित्-'मुहमकडियो' मुखमर्कटिका मुखाना तिर्यकानि कुर्वन्ति, अप्येकिकाएकाः काचित् 'वग्या अब इस समय मुझे क्या करना चाहिये इस तरह का वर निर्णय नहीं कर सकने के कारण व्याकुल न जाने से भेद ममापन्न बन गई।
(मल्लीए णो सचाएड किं चिनि पामोरवा माइक्वित्ता तुसि णीया सचिट्टह, तएण चोरख मल्लीए पटुओ दास चेडीओ हीति, निंदति, खिसति गरहति) अतः वह मल्ली कुमारी को कुछ भी प्रमोक्षा प्रश्न का उत्तर-नहीं दे सकी, किन्तु चुपचाप बैठी रही। जब चोक्षा की ऐसी हालत मल्ली कुमारी की टास चेटियों ने देखी तो वे उसका अपमान रूप हीलना करने लग गई । जाती आदि के उद्घाटन से उस से घृणा रूप निंदा करने लगी। दोपो के कीर्तनसे उस का उपहास रूप खिसना करने लगीं । सरके समक्ष उसके अवर्ण वादरूप गहणा करने लगी (अप्पेगइया हेरूयालति, अप्पेगइया मुहमक्कडियाओ करेति अप्पे गइया बग्घाडीओ करेंति, अप्पेगड्या तज्जमाणीओ निच्छुभति ) इन જોઈએ ?” આ જાતના વિવેકની શક્તિ પણ તેની ના પામી હતી એવી તે વ્યાકુળ થઈને ભેદ સમાપન બની ગઈ હતી
(मल्लीए णो सचाएड मिचि विपामोकावामाइक्वित्तए तुसिणीया सचिह तएण चोक्ख मल्लीए बहुओ दासचेडीओ हीति, निंदति, खिसति गरहात ) એથી મટતીકુમારીને તે જવાબમાં કઈ પણ કહી શકી નહિ તે સાવ મગ થઈને બેસી જ રહી માલીકમારાની દાસ ચેટીઓએ ચક્ષાની આ પ્રમાણેની રિથતિ જોઈ ત્યારે તેઓ તેની અપમાનરૂપ હીલના કરવા લાગી જાતિ વગરનું ઉદ્દઘાટન કરીને તેની ઘણા ૩પ નિંદા કરવા લાગી તેના દેશે ને કહેતી ઉપહાસ રૂપ ખિસના કરવા લાગી બધાની સામે તેની અવર્ણવાદ રૂપ ગëણ કરવા લાગી
.(अप्पेगडया हेरुयालति, अप्पेगइय मुहमडियाओकरेति अप्पेगइया वग्धा. इओ करेंति, अप्पेगइया तज्जमाणोओ निन्छुभति)