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aanandit टीका अ० ८ महाबलादिपट्ाजस्वरूपनिरूपणम् २५९ अन्यच्च - " तीर्थकर पदमाप्तेः, स्थानकेषु च विंशतौ । वसन्त्याराधनार्थं यत्तस्मात् स्थानकनासिनः ॥ १ ॥ " इति ।
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मूलम् - तएण ते महव्वलपा मोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताण विहरति, जाव एगराइयं उवसपजित्ताण विहरति, तएण ते महाव्वलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं सीहनिक्कीलिय तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तं जहा - चउत्थं करेति, करिता सव्वकामगुणिय पारेति, पारिता छह करेति । करिता चउत्थ करेति करिता अट्टम करेंति, करिता छट्ट करेति, करिता दशम करेति करिता अट्टमं करेंति, करित्ता दुवालसम करेति, करिता दसम करेति, करिता चाउ - इसम करेंति, करित्ता दुवालसम करेति, करिता सोलसमं करेति, करिता चोदसम करेति, करिता अट्ठासमे करेति, करिता सोलर्सम करेति करिता वीसईम करेति, करिता अट्ठारसमं करेंति, करिता वीसइँम करेति करिता सोलसम करेति करिता अट्ठा रसमं करेंति करिता चोदसम करेंति, करिता सोलसंम करेंति, करिता दुबलसन करेति करिता चाउदसँम करेंति, करिता दसैँम करेति करिता वालसम करेंति, करिता अहम करेंति, करिता देसमं करेति, करिता छेंड करेंति, करिता अट्ठम करेति, प्रकृति के दाता इन २० स्थानों में जो आराधना करने के निमित्त सदा बसते है नियाम करते हैं वे ही स्थानकवासी कहलाते हैं। दूसरे इलोक का भी यही भाव है। सूत्र
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સ્થાનેમા આરાધના કરવાના પ્રયાજનથી જેએ હંમેશા નિવાસ કરે છે વસે છે,તેએજ સ્થાનત્રાસી કહેવાય છે. બીજા Ôાક ના પણ એજ અર્થ છે સૂત્ર ‘,પ’॥