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___ अनगारधर्मामृतपणिोटी० १०७ धन्यसार्थवाहचरितनिरूपणम् १७९ गिहे नयरे धण्णे नाम सस्थवाहे परिवसइ० अड्डे० भद्दा भारिया अहीण पंचेदिय० जाव सुरूवा तस्स णं धण्णस्ल सत्थवाहस्स पुत्ता भदाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्यवाहदारया होत्था त जहा-धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए तस्त णं ध. पणस्त सस्थवाहस्स चउपह पुत्ताण भारियाओ चत्तारि सुहाओ होत्था, त जहा-उझिया भोगवड्यारक्खइया रोहिणिया।सू०१॥ ____टीका--'जदण भते ' इत्यादि-अथ जम्बूस्वामी पृच्छति हे भदन्त ! यदि खलु श्रमणेन भावता महावीरेण यावत् मुक्तिसमाप्तेन पष्ठस्य ज्ञाताध्ययनस्याय मर्थः प्राप्त , हे महन्त मप्तमस्य खलु ज्ञाताध्ययनस्य कोऽर्थ. प्रज्ञप्तः ? एर जम्बू सामिना पने कृते सति सुधर्मास्वामी प्राह एव खलुनम्बूः तस्मिन् काले तस्मिन्
'जइण मते ! समणेण' इत्यादि । टीकार्थ-(जइण भते !) जनस्वामी पूछते हैं कि हे मदत ! (समणेण जाय सपत्तण उट्ठस्स नायज्झयणस्स अयमहे पण्णत्ते सत्तमस्त ण भते नायज्ञयणस्स के अटे पण्णत्ते?) श्रमण भगवान् महावीर ने जो मुक्ति को प्राप्त हो चुके है छठे जाताध्ययन का यह पूर्वोक्त अयें प्ररूपित किया है तो हे भदत ! ससम ज्ञाता-ययन का उहोंने क्या अर्थ प्ररूपित किया है ? (एव खलु जत्रू!) इसका उत्तर देते हुए श्री सुधर्मा स्वामी जनूम्बामी से करते है कि हे जवू ! सुनो श्रमण भगवान महावीर ने जो सातवें ज्ञाता ययन का अर्थ प्ररूपित किया है वह इस प्रकार है (तेण काग तेण समण्ण) उस काल और उस समय
'जइण भते ! समणेण ' त्या !
Atथ-(जइण भते !) भू स्वामी प्रश्न पूछे ३ -1! (समणेण जाव सपत्तण उस्म नायज्झयणस्स अपमढे पण्णत्ते सतमस्स ण भते नायज्झ यणस के अढे पण्णत्ते १ ) मुक्ति पामता भए लगवान महावीरे ७४ જ્ઞાતાધ્યયનને અથ પૂર્વોક્ત રીતે રજુ કર્યા છે ત્યારે હે ભદત ! તેઓશ્રીએ सातमा हाताध्ययन श म ५३पित यो छ १ (एव सलु जतू!) मा પ્રશ્નનો ઉત્તર આપતા શ્રી સુધમાં સ્વામી તેમને કહેવા લાગ્યા કે હે જબ! સાભળે! શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે સાતમા જ્ઞાતાયનને અર્થ આ પ્રમાણે