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माताधर्मकथासूत्रे
मूलम्-तएण से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेण सद्धिं संपरिवुडे जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उत्रागच्छ, उवागच्छित्ता पुडरीय पव्वय सणिय २ दुरूह, दुरुहित्ता मेघघणस निगास देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टय जाव पाओवगमण णुवन्ने, तणं से थावच्चापुत्ते वहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउ णित्ता मासियाए सलेहणाए सहि भत्ताइ अणसणाइ छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणसमुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे जाव पहीणे || सू० २७ ॥
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टीका- 'तणसे' इत्यादि । ततस्तदनन्तर सड़ स स्थापत्यापुनोऽनगारहस्रेग साधे सपरितो ग्रामानुग्राम विहरन् यनैत्र पुण्डरीक पुण्डरीकनामक पर्वतस्त त्रैवोपागच्छति, उपागत्य च पुण्डरीक पर्वत शनैः शनै दूंरोहति - आरोहति, दूरुप ' मेघघणस निगास' मेघघनसनिकाश मेघाना घन समूहस्तद्वत् कालवर्ण 'देवस
तरण से थावच्या पुत्ते इत्यादि ।
टीकार्थ - (तएण ) इसके बाद ( से धावच्चापुत्ते ) ये स्थापत्यापुत्र अणगार सहस्सेणं सद्धिं सपरिबुडे ) हजार अनगार के साथ२ ग्रामानु ग्रामविहार करते हुए ( जेणेव पुडरीए फवए) जदा पुडरीक पर्वत था ( तेणेव उवागच्छद्द ) वहा आये (उवागच्छित्ता पुडरीय पव्वय सणिय २ दुरूह ) वहा आकर वे उस पुडरीक पर्वत पर धीरे २ चढे ( दुरू हित्ता मेघघणसनिगास देवसनिवार पुढविसिलापट्टय जाव पाओव
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तण से थावच्चापुत्ते ।" इत्यादि ॥
टोअर्थ - (तएण ) त्यारमाह ( से थावच्चापुत्ते) स्थाप यापुत्र ( अणगारसहरसेण ग्रामथी जीने ग्राम पर्वत हतो ( तेणेव
सद्धि स परिबुडे ) मे उन्नर अगुगारनी साथै मे विहार उरता ( जेणेव पुरी पव्त्रए ) या युडरी उवागन्छइ ) त्या आव्या ( उवागच्छित्ता पुडरीय पव्पय सणिय २ दुरुदइ ) त्या पोथीने तेथे। पर्वतथर धीमे धीमे यढ़वा भाडया ( दुखदित्ता मेघघण सनिगास देवसनिवाय पुढविसिलापट्टय जाय पाओनगमण णुवने ) यढीने तेम