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अनगारधर्मामृतपिणी टीका अ० ५ स्थापत्यापुत्र निर्वाणनिरूपणम्
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न्निनाय ' देवसनिपात-निर्माणाद्युत्सवसमये यत्र देवा समागत्य मिलन्ति, देवा ना सनिपातः समिलन यत्र त ' पुढविसिकापय' पृथिवी शिलापटक प्रतिलेख यित्वा यात् ' पाओगमण पन्ने' पादपोपगमनमनुपात. सहस्रशिष्यै सह पादपोपगमनसस्तारक कृतवान् । तत खलु स स्थापत्यापुत्री हूनिवर्षाणि सामान ' ' परियाग श्रामण्यपर्याय = चारित्रपर्याय पाउणत्ता ' पालयित्वा मासिक्या सलेखनना पष्ठिभक्तानि अनशनेन जिला यावत् - केवल्वरज्ञानदर्शने सति 'समुप्पादेत्ता ' समुत्पाद्य जन्तसमये केवलज्ञाना केवलदर्शन च समाप्य ततः पश्चात् सकलकर्मक्षये सिद्धः मुक्ति प्राप्तः यावत् बुद्धो मुक्त. सर्पदु ख प्रहीणः जन्मजरामरणादिदु खरहितो जात ॥ २६ ॥
गमण वने ) चढकर उन्हों ने मेघ सम्रह के समान कृष्ण वर्णवाले तथा निर्वाण आदि के उत्सव के समय जहां देव एकत्रित होते हैं ऐसे पृथिवी शिलापटक पर प्रतिलेखना कर पावत् पादपोपगमन सथारा धारण कर लिया। साथ के उन १ हजार साबुओं ने भी पापोपगमन सयारा ले लिया। (तणं से बावच्चातुत्ते बहुणि वासाणि सामन परि याग पाणिन्ता मासियाण सटेरणाए सट्ठि भत्ताइ अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरमाणदसण समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्वे जाव पहीणे ) इस तरह उन स्थपत्यापुत्र अनगार ने अनेक वर्षो तक श्रामण्य पर्याय का पालन करके एक मान की सखेखना से साठ भक्तो का अनशन द्वारा छेदन करनात् अन्त समय मे केवल ज्ञान केवल दर्शन प्राप्त कर लिया। उन्हें प्राप्त कर फिर वे सफल कर्मों के क्षय होने पर सिद्ध बन गये । यह यात् शब्द से कुछ मुक्त सर्व दुःख प्रहीण जन्मजरा नरणादि दुख रहितो जाता इन पदों का संग्रह हुआ है |०२६|| મે। સમૂડ જેવી કાળી તેમજ નિર્વાણુ વગેરેના ઉત્સવના વખતે દેવા જ્યા એકઠા થાય છે એવી શિલાપર પ્રતિલેખના કરીને પાપે પગમન સ શા સ્વીકાર્યો તેમની साथै थे! उत्तर साधुय पशु (ण से थावच्चापुत्ते बहृणि वासाणि सामन्नप रियोग पाउति मासियाए सले६णाए सट्ठि त्ताइ अणसणाए छेदित्ता जान केवलवर नाणदसण समुप्पाचा तओपच्छा सिद्धे जोव पणे ) मा रीते भ्यायत्यात्र અનગારે ઘણા વર્ષો સુધી શ્રાવણ્ય ય યનું પાલન કરીને એક મહિનાની સલેખનાથી સાઈ ભક્તોનુ અનરાન વડે ચેન કરીને છેવટે કેવળ જ્ઞાન કેવળ દર્શન મેળવ્યુ ત્યાર બાદ બધા કર્મો ક્ષય થયા ત્યારે તેમને મિત્ર પદ મળ્યુ साडी मे 'यावत्' भाग्यो तेही ( वुद्ध मुक सर्वदु नरहीण जन्म जरामरणादिदु खरहितो जात ) आ होना सश्रद्ध थयो छे ॥ सू६॥
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