________________
अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ शुरुपरिमानकदीक्षानिरूपणम् 'तणसे इत्यादि ।
टीका - ततस्तदनन्तर सलुस शुरुः परिवाजक व्यापाि असा निशम्य एव वक्ष्यमाण माकारेणावादीद - मिस ! सहस्रेण सार्धं परितो देवानुमियाणामन्तिके मुठी समीपेऽह परिनानकसहस्रेग सह केशोल्लुअनेन मुण्टो मीत्यर्थः । ततः स्थापत्यापुनोवादी हे देवानुप्रिया कार्ये दीक्षाग्रहणरूपे माकु इत्येमुक्तःशु
"
तरण से सुए परिव्यायण इत्यादि
टीकार्थ - (ण) हमके बाद (मेसु) उस शु
व्राजकने (धावच्च्चादुत्तस्स अतिए पम्प मोच्चा) 2n
के मुखसे श्रुत चारित्र रूप धर्मका श्रवण कर (হ अवधारित कर ( एव वयामी) उन में म भते । परिव्वायगसरस्से ण महि परि
I
भवित्ता पव्वइतर ) हे भदन मैं हजार परिव्रज्को के साथ २ दिन ( अहासु जाव उत्तरपुरस्त्विमेि य एगते एडे, एडित्ता सयमेन च्चापुत्ते तेणेव उवागच्ह ) शुक्र जान कर स्थापत्यापुत्र अनगार
जैसे सुग्व हो वैसा करो - shr
71
( तएण से सुग परिन्याया टीडार्थ --- (तरण ) त्यारा ( 3
पुत्तम्स अतिए धम्म सोच्"
"/
ચારિત્ર રૂપ ધર્મનુ શ્રવણ
धारित अने ( एन चाल परिव्वायगसाहरसेण सहि इत्तए ) हे लहत तु થઇને દીક્ષિત થવા
"
१९
„
2747
तिड टय जान धाग„„
जेणेन यावच्चापुत्
ganpati/
सामजीने स्थाय
तेभ
"
" //
ང་
/
먹어
ની મહાર થ
१ २५ ॥
*
192
gang