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________________ 788 मालाधर्मक सुधर्मास्वामी जम्यूस्वामीन पाह-एयरल समणणं ' इत्यादि, हे जमः। एवं खलु श्रमणेन भगवता महावीरेण त्रयोदशस्य नाताध्ययनस्य, अयम् उत्त स्वरूपः, अर्थ परातः, ' इति ब्रवीमि '-अस्य व्यापा पूर्वपत् / / 90 // 8 // इति श्री-विश्वविख्यात-जगद्गल्लभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभापाकलितललितक- / लापालापा-मविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्यनिर्मापक-पादिमानमर्द-श्रीशाहच्छ प्रपतिकोल्हापुरराजमदत्त-'जैनशास्त्राचार्य' पदभूपित-कोल्हापुरराज गुरु-पालनमचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिनारपूज्यश्री-पासीलारेचतिविरचिताया 'ज्ञाताधर्मकथान' सूनस्यानगारधर्मामृतव. पिण्याख्याया व्याख्याया प्रयोदशम ययन सपूर्णम् // 13 // रोगा, समस्त कर्मकृत विकार से रहित होने के कारण स्वस्थ रोगा और इस प्रकार समस्त दुःश्वों का वर अन्त करने वाला रो जावेगा। (एवं ग्बलु जबू! समणेण भगवयामहावीरेण तेरसमस्स नायजायण स्स अयमढे पण्णत्त तिवेमि) इस प्रकार जब स्वामी को समझाकर अय गौतम उन से करते हैं हे जवू / श्रमण भगवान् महावीरने इस तेरहवें ज्ञाताध्ययन का उक्त रूप मे अर्थ प्ररूपित किया है / मैंने जैसा उनके मुग्व से इसे सुना वैमा ही यह तुमसे कहा है। अपनी ओरसे मिलाकर इसमे कुछ नहीं कहा है // सूत्र 8 // श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर पूज्य श्री घासीलालजी मराराज कृत "ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र" की अनगारधर्मामृतवषिणी व्याख्याका तेरहवा अध्ययन समाप्त // 12 // તે સકલ લેકાલકને જાણનાર થશે, સમસ્ત (બધા) કર્મોથી મુક્ત થશે, સમસ્ત કર્મકૃત વિકાર વગર થયા બદલ તે સ્વસ્થ થશે અને આ રીતે બધા દુખે. ते मन्नार थ री (एव खलु जनू ! समणेण भगवंया महावीरेण तेरमस्स नायज्झयणस अयमटे पण्णत्ते ति चेमि) मा शत 4 5 स्वाभान समनवाने ગૌતમ તેમને કહે છે કે હે જ બૂ' શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે આ તેરમાં સાતાધ્વર્યનને પૂર્વોક્ત રૂપે અર્થ પ્રરૂપિત કર્યો છે કે જે તેમના મુખથી સાભળે છે તે જ તમને કહ્યું છે કે આમાં પિતાની મેળે ઉમેરીને કઈજ” नथी // सूत्र "8" // શ્રી જૈનાચાર્ય ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત જ્ઞાતાસૂત્રની અનગારધર્મામૃતવણિી ધ્યાખ્યાનુ તે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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