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मनगारधर्मामृतघर्पिणी टोका अ० १३ नन्दमणिकारमयनिरूपणम् ७७ भगवानाह-हे गौतम ! ददुरस्य खलु देवस्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः पनप्ता । पुनगौतम पृन्छति-'सेण' इत्यादि स खलु हे भदन्त । दर्दुगे देवस्तस्माद् देवलोकाद आयु. क्षयेण भवक्षयेण स्थिति क्षयेण चय त्यक्त्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उत्पत्स्यते-उपपात-जन्म प्राप्स्यति ? । भगवान् कथयति-'गोयमा ' इत्यादि । हे गौमत । स खलु दर्दुरोदेवः आयुः क्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण देवगेका च्च्युतः सन् महाविदेहे वर्षे जन्म प्राप्य सेत्स्यति भोत्स्यति मोख्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्त करिष्यति च । पण्णत्ता, से ण भते ! दददुरे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएण ठिइनखरण चय चहत्ता कहिं गच्छिदिइ' ) हे भदत ! दर्दुरदेव की बता कितनी स्थिति हुई है ? प्रभु करते हैं कि हे गौतम । चार पल्योपम की स्थिति उसकी वहा हुई है । पुनः गौतम उनसे पूछते हैं कि हे भदन्त ! वह दर देव वहा से-उस देवलोक से-आयु के क्षय भवके क्षय एव स्थिति के क्षय हो जाने पर शरीर का-देव सबन्धी श रीर का परित्याग कर कहा जावेगा (कहिं उववजिदिइ) कहां पर जन्म धारण करेगा? इस प्रश्न का उत्तर भगवान् ने उन्हें इस प्रकार दिया-(गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिड, बुज्झिदिइ, मुच्चिरिइ, परिनिव्वाहिह सव्वदुक्खाण अत करेहिइय) गौतम ! वह ददर देव आयु के क्षय से, भव के क्षय से एब स्थिति के क्षय से देवलोक से चवकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म प्राप्तकर वहो से सिद्ध होगा, विमल केवल लोक से सकल लोकालोक का ज्ञान होगा, समस्त कर्मों से मुक्त पलिओवमाइ ठिई पण्णत्ता से ण भते ! दद्दुरे देवे ताओ देव लोगाओ आउक्सएण भवक्सएण ठिइक्सएण चय चत्ता कहिं गच्छिहिइ ?) महन्त । त्या र દેવની કેટલી સ્થિતિ થઈ છે ? પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ ! તેની ચારપાપમ જેટલી સ્થિતિ થઈ છે ગૌતમ ફરી તેઓશ્રીને પૂછે છે કે હે ભદન્ત !તે દદુર દેવ ત્યાથી-તે દેવવેકમાથી-આયુષ્યના ક્ષય, ભવના લય, તેમજ સ્થિતિને ક્ષય च्या माह शरीरने-४१समधी शरने त्यने ४या ? (कहिं उपजिहिद) કયા જન્મ પ્રાપ્ત કરશે? ભગવાને આ પ્રશ્નને જવાબ આ પ્રમાણે આ કે (गोयमा ! महाविदेहे वासे सिझिदिइ बुझिहेइ, मुच्चिहिइ, परिनिव्वाहिइ, सव्य दुक्खाण अत करेहिह य) गौतम ! १६६२ हे मायुकना क्षय यया माह, ભવને ક્ષય થયા બાદ, અને સ્થિતિને ક્ષય થયા બાદ દેવલોકથી આવીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં જન્મ પ્રાપ્ત કરીને ત્યાથી સિદ્ધ થશે વિમલ-કેવલ લેકશી