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________________ शाताधर्मकथाशास्त्रं सार:=श्रेष्ठः, इत्यादि । 'वणओ' वर्णकः भूपवर्णनप्रकरणोपपातिकमत्राद् विजेयम् , तस्य खलु श्रेणिकस्य राज्ञः नन्दानाम्नी देव्यासीत् । सा कीदशी? इत्यत्राह-'मुकुमालपाणिपाया' मुकुमारपाणिपादा-पाणी च पादौ च पाणिपादकरचरणं, गुकुमारम् अतिकोमलं पाणिपादं यस्याः सा तथोक्ता अतिकोमलकरचरणवतीत्यर्थः, 'वण्णमओ' वर्णका-राजीवणेन औषपातिकमूत्रादवसेयम् । तस्य खलु श्रेणिकम्य पुत्रः 'नंदाए देवीए अत्तए' नन्दाया देव्या आत्मजः नद्गर्भज इत्यर्थः अभयनामा कुमारऽआसीत् । स कीदृशः ? इत्याह-बहीण जाव सुरुवे' अहीन यावत्मुरूपः, अत्रत्ययावच्छब्देन-'अहीणपडिपुण्णपचिंदियसरीरे, गया है। राजाओं के समूह में दिव्यऋद्धि, दिव्यधुति. तथा दिव्यप्रभाव आदिद्वारा वह महेन्द्रकी तरह उत्तम प्रकट किया गया है। यहां पर भी जो यह "वण्याओ" शब्द आया है वह यह प्रकट करता है कि इस राजा. के विषय में और भी अधिक वर्णन अन्य ग्रन्थों में किया गया है, सो वह वर्णन औपपात्तिक मन्त्र से जाना जा सकता है। । (तस्स णं सेणियस्स रन्नो नंदा नामं देवी होत्या मृकुमार पोणिपाया वणओ) उस श्रेणिक राजा की रानी का नाम नंदा था। इसके हाथ पाव बहुत ही सुकुमार थे। यह कितनी-अधिक मुन्दर थी-और किस स्वभाव आदि की थी यह सब विषय का वर्णन औपपातिक सूत्र में दिया गया है। (नरमण सेणियस्सरन्नो पुत्ते नंदाए अत्तए अभयनायं कुमारे होत्था) उम श्रेणिक राजा के एक पुत्र था जिसका नाम अभयकुमार था। यह नंदा देवी की कुक्षि से अवतरित हुया था । (अहीण जाव सुस्वे) यहां यावत् शब्द से यह पाठ-ग्रहीत हुआ है-इसका शरीर लक्षण से अन्यून અમૂહમા દિવ્યાદ્ધિ, દિવ્યદ્યતિ તેમજ દિવ્યપ્રભાવ વગેરેથી તેને મહેન્દ્રની જેમ ઉત્તમ બતાવવામાં આવ્યા છે. અહીં પણ જે “વાળો શબ્દ આવ્યો છે, તે આમ બતાવે છે કે આ રાજાના વિષે એના કરતા બીજું વધુ વર્ણન બીજ શાસ્ત્રોમાં કરવામાં આવ્યું છે. માટે તે વર્ણન ઓપપાતિક સૂત્રવડે સમજી શકાય છે. तस्स णं सेणियस्स रन्नो नंदा नामं देवी होत्थासुकुमार पाणिपाया वण्यओ) ते अलि तिनी २५Nनु नाम नहा तु. तेना डायमा म सुમળી હતા તે કેટલી બધી રૂપવતી હતી તેને સ્વભાવ વગેરે કે હતા, આ જાતના या योनु वर्णन मोययाति सूत्रमा मापामा माव्युछे. (तस्स णं सेणियम्य उन्नो पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभयनामं मारे होत्या) ते अलि શજના એક પુત્ર હતા. તેનું નામ અભયકુમાર હતું. તે નંદાદેવીની કુખમાંથી અવतारता (अहीण जाव सुरूवे) माडी यावत् साथी से पा: प्राण ४२वामा
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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