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________________ ज्ञाताधर्म कथासूत्रे (३) अम्-चनात्मत्रमिति न्यायादत्र - 'अण्ड' मिति मयूराण्डम्, तदुपलक्षितमध्ययनम् - अडकतातम् । (४) कर्मः कर्म इति कच्छप:, तदुदाहरणेन गुप्यगुप्तिगुणदोषप्रतिपादकत्वादिदं कर्मज्ञातम् । (५) 40 शैलराजर्षिवक्तव्यताविषयकमध्ययनं शैलकज्ञातम् । (६) तुम्बम् - अलावृः, तदुदाहरणप्रतिपादकत्वेन तन्नाम्ना प्रसिद्धं तुम्वज्ञातम् । ( 9 ) रोहिणी - धन्यसार्थवाहपुत्रस्य धनरक्षणतत्परा भार्या, तस्याः शालिकणसुरक्षणवर्धनोदाहरणेन समुपलक्षितं रोहिणीज्ञातम् । (८) महि:- एतन्नाम्नी कुम्भकराजपुत्री - एकोनविंशतितम-तीर्थंकरपटधारिणी तदुदाहरणोपलक्षितं महिज्ञातम् । (९) माकन्दी - अत्र माकन्दी शब्देन साकन्दीदारको गृह्यते, तन्नाम्ना प्रसिद्ध माकन्दीज्ञातमिति माकन्दीदारकज्ञातमित्यर्थः । (१०) चान्द्रिक :- चन्द्रोदाहरणमतिपादकत्वाञ्चान्द्रिकज्ञातम् । (११) दावद्रवः-स्वनामख्यातः समुद्रतटस्थो वृक्षविशेषः, तदुपलक्षितं ज्ञातम् । चोर के संबन्ध की कथा है। अण्डाध्ययन में मयूराण्ड की ३ क्रमां व्ययन में कर्म के उदाहरण को लेकर गुप्ति और अंगुप्ति के गुण दोपों का वर्णन किया गया है। शैलकज्ञात में शैलकराजर्षि के संबन्ध की कथा है। तुम्बात में अलाबू - तुमडी का उदाहरण प्रतिपादित किया गया है ६ । रोहिणी ज्ञान में अन्य साना के पुत्र की कथा है जो धनके रक्षण और उसके वर्धन करने में विशेष चतुर थी || महीज्ञात में १९वें भगवान श्री मल्लीनाथ की कथा कही गई है। ये कुम्भकराज की पुत्री थीं, माडीज्ञान में माकंदी दारक की कथा कही हुई है। चान्द्रिकज्ञान चंद्रमा का उदाहरण दिखलाया गया है१० दाज्ञात में समुद्र तट पर रहे विशेष का दृष्टान्न दिया गया है११। उदकज्ञात में परिखा ૨ રાચયનમાં મમ્રાટની કાંધ્યયનમાં કર્મ (કા) ને દાખલે લઈન પ્તિ અને અણુમિના ગુણ દેખાનુ વર્ણન કર્યું છે ઢોલકત્તાનમાં ગલક રાજર્ષિના સબધની છે, તું બતમાં અટાય (તે શ્રી)નું ઉદાહરણ આવ્યું છે . રાહિણી ૯ × ૨થવાની પુત્રવધુની કથા છે. જે ધનનુ ણુ અને તેનુ વન થી ૨ ચંતુ તેની ઇ મધ્યગાનમાં એગ સમા (૧૯) ભગવાન શ્રી મલ્લિનાથની भी सुना, माडी जातमां भाएंट्टी द्वार ચંદ્રનું ઉદાહરણ આપવામાં આવ્યુ છે ૧૦ તંત્રમાં શુદ્રના કિનારે અલ રાવ વિશેષના દાખલા આપવામા આવ્યું છે वामां कभी કની કુ માગ્યાથી ૮, દ્રિકાતમાં
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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