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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० उ.१ १०१ जीवानां कर्मवन्धकारणनिरूपण ६५ वादिनो वैनायकवादिश्च भवन्तीति । 'आहारसन्नोवउत्ता जाब परिग्गइसन्नोवउत्ता जहा सस्ता' आहारससंक्षोपयुक्ता यावत्परिग्रहसंज्ञोएयुक्ता यथा सटेश्याः, अत्र यावत्पदेन भय संज्ञा जैथुनसंज्ञयोः संग्रहः, तथा चैते सर्वेऽपि क्रियावादिलोऽपि भवन्ति अक्रियावादिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिकवादिनोऽपि चैनयिकवादिनो. ऽपि सन्ति स्थानिविलक्षणपरिणामवत्वादितिभावः। 'लोसन्नोवउत्ता जहा अलेस्सा' नो संझोपयुक्ता जीवा अलेश्यजीवपदेव केवलं क्रियावादिन एव न तु अक्रियावादिनो पहा अज्ञानिकवादिनो न वा वैनरिकवादिनो भवन्तीति। 'सवेदगा जाब नघुपयवे हमा जहा सलेरता' सदका जीवा यान नपुंसमवेदका यथा प्रकार सलेक्ष्य जीय क्रियाचोदी भी होते हैं, अक्रिप्राधादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और बैनयिकवादी भी होते हैं, उसी प्रकार से आहारतज्ञ एयुक्त जीव यापत् परिग्रह संज्ञोपयुक्त जीव भी चारों प्रकार के समवसरणाले होते हैं । यों कि इनका परिणाम विलक्षण प्रकार का होता है। यहां यावत् शब्द ले भयसंज्ञोपयुक्त और मैथुनसंज्ञोपयुक्त इनका ग्रहण हुआ है। तथा च-ये सब क्रियावादी भी होते हैं अक्रियाशादिभि होते हैं अज्ञानवादी भी होते है और बैनयिकवादी भी होते हैं। 'लो लपणोवउत्ता जहा अस्मा' नो संज्ञोपयुक्त जीव अले श्य जीव के जैसे क्षेवल क्रियावादी ही होते हैं। अक्रियावादी अज्ञानवादी और वैवधिकक्षादी नहीं होते हैं। 'लवेदगा जाच नपुंसमवेदगा जहा सलेरसा सवेदक जीद थावत् नपुंलकवेदक जीच रमलेश्य 'सलेला' सोश्य छ ? प्रमाणे ठियावाही पण काय छ, मठियावाही પણ હોય છે. અજ્ઞાનવાદી પણ હાથ છે. અને વિનાયકવાદી પણ હોય છે એજ પ્રમાણે આહાર સંજ્ઞોપગવાળા જી પણ યાવત પરિગ્રહ સંશોપ યુક્ત જીવ પણ ચારે પ્રકાર ના સમવસરણવાળા હોય છે. કેમ કે તેઓને પરિણામ વિલક્ષણ પ્રકારનું હોય છે. અહિયાં યાવત્ શબ્દથી ભયસંશોપ
ગવાળા અને મૈથુનસંપગવાળા એ બે ગ્રહણ કરાયા છે. તથા આ બધા યિાવાદી પણ હોય છે અકિયાવાદી પણ હોય છે. અજ્ઞાનવાદી પણ होय २ वैयपाही ५५ डाय छे. 'नो खण्णोषउत्ता जहा अलेस्सा' ना સંજ્ઞોપયુક્ત જીવો અલેશ્યાવાળા જીવન કથા પ્રમાણે કેવળ ક્રિયાવાદી' જ खाय छे. मध्यावाही, अज्ञानवाही, मने पैनयिवाही खाता नथी 'सवेयगा जाव नपु सगवेयगा जहा प्लेस्सा' स४ ०१ यावत् नथुस ७१
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