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________________ • ६८० । भगवतीस्त्रे न्ते ? किं नैरयिकेभ्य आगत्य यावदेवेभ्य आगत्य समुत्पद्यन्ते इति प्रश्ना, भगत वानाह-अतिदेशद्वारेण-'उनाओ' इत्यादि, 'उपनामो तहेत्र अनुत्तरविमाणरजनो' उपपात स्तथैव अनुत्तरविमानर्जः अनुत्तरविमानदेवान् परित्यज्यान्यतः सर्वत एव मैरयिकतिर्यग्मत्रुप्यदेवेभ्य उपपात एपां वक्तव्य इति । 'परिमाणं अचहारो उच्चत्तं बंधो वेदो वेगणं उदीरणा य जछा काहलेससह परिमाणमपहार उच्चत बंधो वेदो वेदनमुश्य उदीरणा च यथा कृष्णलेश्यशते करणळे वशते च तीन्द्रिय शतकस्यातिदेशः कृतः, तथापि एकेन्द्रियरातातिदेशोऽलोग्था परिमाणादिकमुदीरणान्तं कथितं तथैवेहापि यथासम्म नत्र ततः ज्ञातव्यम् । 'पहलेमा नरयिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? यावत् देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसका अतिदेश द्वारा प्रभु उत्तर देते हुए कहते हैं"उवाओ नहेव अनुत्तर विमानवजो' 'हे गौतम ! अनुत्ताविमावासी देवों को छोडकर सब जगहों ले लेयिरतों में ले, तिर्यग्गोनियों में से मनुष्यों में से और देवो में से-हनका उपपात होता है। परिमाणं अवहारो, उच्चत्तं बंधो, वेदो, वेषणं, उदीरणा य जहा कालेम्पनए' परिमाण अपहार ऊंचाई बन्ध, वेद वेदन, उदीरणा ये सब कृष्णलेश्य. शतके जैसे जानने चाहिये । कृष्णलेश्य शत में हीन्द्रिय शतक का अतिदेश किया गया है। द्वीन्द्रिय शतक में भी एकेन्द्रिय शनका अति. देश हुआ है । इसलिये वहां परिमाण से लेकर उदीरणा नकसा कथन जैसा किया गया है उसी प्रकार से यहां पर भी इनका कथन यथा संभव वहीं से जानना चाहिये । ' कलेस्मा वा जाव सुक्कलेस्सा | ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા તિર્યંચનિકે માથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેશમાંથી આવીને ઉત્પન્ન थाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री गीतमाभान ४९ है-'उववाओ तहेव अणुत्तरविमाणवज्जो' के गौतम ! मनुत्तर विमानवासी देवाने छोडने દરેક સ્થળોમાંથી અર્થાત્ નૈરયિમાંથી તિર્યંચાનિકમાંધી, મનુબેમાંથી, अन हेवामाथी तेयान। 64पात थाय छे. 'परिमाण अवहारो, उच्चत्त, बंधो, वेदो, वेयण', उहीरणा य जहा कण्हलेम्ससए' परिभाए अ५।२ याs, બન્ય, વેદ, વેદન ઉદીરણા આ બધા કૃષ્ણલેશ્યા શતકમાં કીન્દ્રિય શતકને અતિદેશ–ભલામણ કરેલ છે. અને દ્વીયિ શતકમાં પણ એકેન્દ્રિય શતકને અતિદેશ કરેલ છે. તેથી ત્યાં પરિમાણથી લઈને ઉદીરણ સુધીનું કથન જે રીતે કરેલ છે, એજ રીતે અહિયાં પણ યથાસંભવ તેઓનું કથન ત્યાના કથન प्रभार ४२ वे'. 'कण्हलेस्सा वा, जाव सुक्कलेरसा वा' मा मससिद्धि
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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