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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.४० अ.श.८ भवसिद्धिक क.कृ. संनिमहायुग्मनि० ६७१ स्पषपूर्वा इत्युत्तरम् अत एतद् उभयोः शतयो वैक्षण्यमिति । 'सेसं तहेव' शेष भवरमित्यनेन यत्र कथितं तदतिरिक्त सर्व प्रथम शतवदेव ज्ञातव्यम् । 'से भंते ! सेवं भंते-त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।।। ॥ चत्वारिंशत्तमे शतके अष्टमं संशिमहायुग्मशतं समाप्तम् ॥४८॥ ॥'अह नवमं सनिमहाजुम्मसयं' ॥ मूलम् कण्हलेल अवसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्म सन्निपंचिंदियाणं भंते ! कओ उववज्जति? एवं एएणं अभिलावणं जहा ओहियकण्हलेस्लसयं सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ चत्तालीसइमे सए नवमं सन्तिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥४०-९॥ __छाया- कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्मकृत्युग्मसंज्ञिपञ्चेन्द्रियाः खल भदन्त | कुत उत्पद्यन्ते एवमेतेनाभिलापेन यथा औधिककृष्णलेश्यशतम् । तदेव भदन्त । तदेव भदन्त ! इति ॥ ॥ चत्वारिंशत्तमे शतके नाम संज्ञिमहायुग्मशतं समाप्तम् ॥४०॥९॥ पचेन्द्रिय में भवसिद्धिक रूप से अनन्तधार उत्पन्न नहीं हुए हैं। 'सेस तहेव' बासी का और सम पाथन प्रथम शतक के जैसा ही है। 'सेवं भंते 1 से भते । तिहे भदन्त ! आप का यह कथन सर्वधा सत्य ही है २ । इस प्रकार कहकर गौतमने प्रभुश्री को वन्दना एवं नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार कर फिर वे संयन और तप से आत्मा को भादित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये। ॥४० वे शतक में यह आटयां महायुग्मशत समान ४०-८॥ शतक नौवा महायुग्मशत 'म.हलेस लवसिद्धिय काडजुम्मकडजुम्म सन्निपचिंदियाणभंते !' 'सेवं भंते ! सेव भंते ! त्ति' है मग मा५ हेवानुप्रियनु मा धन સવયા સત્ય જ છે. હે ભગવન આપનું આ કથન સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે રહીને પ્રભુશ્રીને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસ્કાર કરીને તે પછી સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પોતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા. ચાળીસમા શતકમાં આ આઠમું મહાયુમ શતક સમાપ્ત ૪૦-૮૫ नवमा भ'युग्म शतना प्रारंभ-- ‘ह पहलेरस भवसिद्धिय कब्जुम्मकडजुन्म सनिपचिदियाण भते ! त्यादि
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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