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thraद्रका टीका श०४० अ. श. १ कृ कृ. संक्षिपञ्चेन्द्रियोत्पात:
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प्रकृतीनां वन्धका वा भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह - गोगमा ! इत्यादि, 'गोयमी' हे गौतम! 'सत्तविधगावा जाव एगचित्रमा वा सविधकर्म कृतीनां बन्धका वा संज्ञिञ्चेन्द्रियाः यावत् एकविधवन्धका पा, अत्र यावत्पदेन अष्टविधबन्धका वा पदविधबन्धका वा एतयोः संग्रहो भवतीति । 'तेणं संते ! जीवा कि आहारसन्नोउता जाव परिहसन्नोवा' ते खलु भदन्त । जीवाः संज्ञिपञ्चेन्द्रियाः किमाहारोपयुक्ता भनन्ति यात्रत्यरिग्रहसंतोषयुक्ता वा भवन्ति अत्र यावत्पदेन स्यशैथुनसंज्ञयोः परिग्रहो भवति 'नो सनोउचा वा' को संज्ञ युक्ता वा भवन्ति ? 'सव्वत्थ पुच्छा माणिकन्य' सर्वत्र पृच्छा - प्रश्नरूपा भणितन्या, पृथक् पृथगुरूपेण सर्वप्रश्नः करणीय इति । भगवानाह 'गोमा' इत्यादि, 'गोयमा !' हे गौतम | 'आहारसन्नोउता जाव वो सन्नो उत्ता' आदारसंज्ञोपहैं ! 'छव्हि बंधगावा' छ प्रकार की कर्म कृतियों के बन्धक होते हैं अथवा 'एहि षणा का एक प्रकार की कर्मप्रकृतियों के
होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है- 'लोचना ! ये जीन 'सत्त विहा बंधा वा जाव एधि बंधना वा' सात प्रकार की कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं यावत् एक प्रकार की कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं । यहाँ यावत् शब्द से 'अष्टदिका वा पविध बन्धका वा इन पदों का संग्रह हुआ है । 'तेणं संते । जीवा किं आहारपन्नोवता जाव परिरहसन्नोवला' हे भदन्त ! वे संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव क्या आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रह संज्ञोपयुक्त होते हैं ? यहां यावत् पद से 'जय मैथुन संज्ञाओं का ग्रहण हुआ है। अथवा 'तो सन्नोचता वा' ये तो सज्ञोपयुक्त होते है ? इस प्रकार 'सन्वत्थ पुच्छा भाणियन्ना' पृथक् पृथक रूप से प्रश्न कर लेना चाहिये । होय हे ? अथवा 'छव्विह बंधगावा' छ अारती प्रतियोना गंध अश्वावाजा होय हे ? अथवा 'एगविहवनगा दा' से प्राश्नी अमृतिला गंध उरवाजा होय हे ? या प्रश्नना उत्तरसां अलुश्री गौतम | वो 'सत्तविह बधगावा जाव एगवि बंधगा वा' सात प्राश्नी કમ પ્રકૃતિયાના આધ કરવાળા પણ હાય છે. અહિયાં યાત શબ્દથી પ્રલિપ धावा पद्धविध बंधगात्रा' या होना सग्रह थयो छे'ते ण' भवे । जीवा कि आहारसन्नोव उत्ता जाव परिग्गदसन्नोव उत्ता' हे लभवन ते संज्ञी यथेन्द्रिय જીવા શુ આહાર સંજ્ઞોપચેગવાળા હોય છે ? ચ વત્ પહિ સજ્ઞોપયાગવાળા હોય છે? અહિયાં અવત્પદથી ભય અને મૈથુન સત્તાએ ગ્રહણ કરવામા मावेस छे अथवा 'नोसन्नोवउत्ता वा' मा नोराजोपयेोवाणा होय हे ? या रीते 'सम्वत् पुच्छा भाणिकवा हा हा उपथी अन उरी देवे। ए
डे - 'गोयमा । हे
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