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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०३७ अ. श.१ कृ.कृ.त्रीन्द्रियजीवोत्पातः तयः । 'ठिई जहन्नेणं एक्कं समयं स्थितिर्जघन्येन एकसमयममाणा 'उक्कोसेणं एग्णवन्नं राइदियाई उत्कर्षेण एकोनपश्चाशत् रात्रि दिवानि, 'सेस तदेव' शेष मरगाहनास्थित्यतिरिक्त सर्व द्वीन्द्रियशतदेव त्रीन्द्रियशतकेऽपि ज्ञातव्यम् 'सेच भंते ! सेवं भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।। ॥ इति श्रीन्द्रियमहायुग्वशतानि समाप्तानि ॥३७-१२॥ ॥ सप्तत्रिंशत्तमं शतकं समाप्तम् ॥३७॥ उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोश की है । 'ठिई जहन्नेग एक्कं समय' एगूणवन्न राइ दियाई" तथा स्थिति जघन्य ले एक समय की है और उत्कृष्ट ४९दिक रातकी है। 'सेसं तहेव' अवगाहना एवं स्थिति से अतिरिक्त और उपपात आदि का कथन द्वीन्द्रिय शतक के जैसा ही है 'सेव भंते ! लेव भते! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह लब सर्वथा सत्य ही है २ । इस प्रकार कहकर गौतमने प्रभुश्री को वन्दना की और नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये। ॥३७ वां शतक समाप्त॥ SYouथी समाना त्रय गानी छ, 'ठिई जहण्णेण एक्क समय उक्कोसेण एगूणवन्न राईदियाइ' तथा स्थिति धन्यथा ये समयनी छ, भने अष्टथा ४८ सागपन्यास हिसरातनी डर छे. 'सेर तहेव' अवगाहना मनस्थितिना કથન શિવાય બાકીના ઉપપાત વિગેરે સંબંધી કથન બે ઈન્દ્રિયવાળા જીના શતકમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે _ 'सेव भते ! सेव भते ! त्ति' है मापन २५ देवानुप्रिये ॥ त्रय ઈન્દ્રિયવાળા જીના સંબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કર્યું છે તે સર્વથા સત્ય જ છે. હે ભગવન આ૫ દેવાનુપ્રિયનું કથન સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસ્કાર કરીને તે પછી સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પિતાના સ્થાન પર બિરાજમ ન થયા સૂ૦૧ સાડત્રીસમું શતક સમાપ્ત ૩ણા
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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